यार वो बहुत बोलता, है पर है सही... लेकिन यार उसको तो शर्म भी नहीं आती बोलने में - तो क्या हुआ शर्म ही करता तो बोल कैसे पता...और आज देखो वो लोग उसकी कितनी तारीफ कर रहे हैं....
कुछ ऐसे ही वाक्य हम भी कभी कभी बोलते है या सुनाने को मिल जाता है किसी के बारे में ... क्यों मैंने सच कहा न ? जनाब कहना ये चाहता हूँ की बोलो और बेधड़क होकर बोलो, हम अपने आसपास, दोस्तों की महफिल में, सोसाइटी में, बस में, किसी मंच पर, या कही भी कुछ बोलते-बोलते रह जाते है और बाद में सोचते है मुझे भी वहा कुछ बोलना चाहिए था, पर अब पछताए होत क्या जब....
कुछ लोग अक्सर अपनी बात दुसरो के सामने नहीं रख पाते है, मन की बात मन में ही रख लेते है, सोचते है बोलूँगा तो कैसा लगेगा, बोलते हुए मेरे हाव-भाव कैसे होंगे, सामने वाला मेरे बात का कैसे प्रतिक्रिया देगा, मेरे बात को गंभीरता से लेगा की नहीं..ब्ला.. ब्ला..ब्ला......
तो बोले खूब बोले, शर्म लिहाज छोड़कर, अपनी मन की बात बोले, अपनी प्रतिक्रिया दे, कुछ प्रतिवाद करना हो तो जरुर करे ये कभी अपने मन में हिन् भावना को उपजने न दे. पुरे बिश्वास के साथ बोले सामने वाले के आखों में आखे डालकर बात करे, जो भी बोले विश्वाश के साथ बोले और फिर देखिये आपके बिचार का लोग कैसे स्वागत करते है...
नोट : यह मेरे निजी अनुभव पर आधारित है... जनाब कुछ गलत कहा हूँ तो मुआ.....फ..... पर......