अगर मैंने अपने देश के खिलाफ और अमेरिका के पक्ष में लिखा है तो मुझे क्षमा करना !


अगर मैंने अपने देश के खिलाफ और अमेरिका के पक्ष में लिखा है तो मुझे क्षमा करना !


अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े के प्रति अमेरिका के रवेये से भारत ने कड़ा रुख अपनाया ! 
सभी पार्टी के मुखिया एक सुर में बोले : - ठीक है.. बिलकुल ठीक है.. ऐसा होना भी चाहये !

जनाव इलेक्शन का टाइम है - मत भूलो वोट लेना है इनको, सभी को चाहे कोई भी हो !

देवयानी ने अपने नौकर को पूरा वेतन नहीं दिया ! क्या ये अपराध नहीं है ?
हा नहीं है.. नहीं है.. नहीं है.. इनके लिए नहीं है !
जिनके टेबल के सामने बिसलेरी की पानी की बोतल हो, सामने लाइव कैमरा हो, सम्मान विदेश मामले के जानकर का हो और एक प्रोग्राम में केवल बिचार रखने लिए एक मोती रकम की पेशकश की जाती ही वो यही बोलेंगे ! और यही समाचार में दिखाया भी जा रहा है

लेकिन गौर करो दोस्तों क्या उस नौकर की भी कोई स्टेटमेंट दिखाया जा रहा है? जिसे उसके काम के बदले मामूली मजदूरी दी जा रही थी ?
या नौकर के मन की बात जानने की कोशिश की जा रही है ? जिसके लिए देवयानी जी को पनिशमेंट दिया गया !

नहीं ! नहीं ! नहीं ! ... क्यूंकि नौकरशाह या बड़े - बड़े अधिकारी - चाहे पूंजीपति हो या बड़े बड़े बुद्धिजीवी - सब के सब अपने स्वार्थ के लिए बड़ा बना रहना चाहते है !
क्या बुराई है अमेरिका ने कड़ा कदम उठाया है देवयानी के खिलाफ तो !
अपने गिरेबान में झांक कर आज के पूंजीपति देखे ! एक नौकर रखने के योग्य एक बड़ा वोहदेदार देखे की क्या वो अपने नौकर के साथ सही व्यव्हार कर रहा है ?... अगर ऐसा नहीं है तो वो सजा का पात्र है चाहे वो कोई भी हो !

आज के प्राइवेट कंपनी में कार्यरत मजदूरो के हालत क्या है ?
किसी तरह मजदुर ३५०० से लेकर ४५०० रुपये में १० घंटे की नौकरी कर रहे है !
मज़बूरी में एक १०/१० के कमरे में पाच-पाच मजदुर गुजर बसर कर रहे है क्यूंकि उनका माकन मालिक एक कमरे का किराया २५०० रुपये से कम लेने के लिए तैयार नहीं है !
यह स्थिति आज की है (स्थान - देल्ही एन सी आर) - और अमेरिका के रवेये से सभी खफा है की ...

और अगर नौकर को सही वेतन नहीं दिए जाने के कारन अमेरिका देवयानी के खिलाफ कड़ा कदम उठा रहा है तो उसमे ..... बुराई क्या है ! क्या ये यहाँ हमारे अपने देश में हो रहे मजदूरो के शोषण के खिलाफ एकजुट होने का समय नहीं है !

खैर दोस्तों आप सभी समझदार है - अगर मैंने अपने देश के खिलाफ और अमेरिका के पक्ष में लिखा है तो मुझे क्षमा करना !

आपका दोस्त गणेश

एक और मार्केटिंग का फंडा

एक और मार्केटिंग का फंडा

वाह ! वाह ! वाह !

यहाँ सब कुछ बिकता है ! बेचने वाला चाहिए..! 

आज जुम्मा है है क्या ?

आज जुम्मा है है क्या ?
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"लो जी आ गया.. सायद आपने बुलाया भाई जान ?"
मै अपने काम में मशगुल था इसी बीच कुछ सुनाई पड़ा ! मैंने पीछे मुड कर देखा और बोल पड़ा 

 "सिराज भाई"

आवो आवो.. मैंने बोला ! आ गए हफ्ता लेने ? रुको देखता हूँ सायद खुल्ला है पांच रुपये मेरे पास ! 

उस दिन जुम्मा नहीं मंगलवार था और सिराज भाई हनुमान जी के प्रसाद के लिए हर किसी से जिससे जो बन पड़े पैसा मांग रहे थे ! इस तरह हमारे कम्पनी में हर मंगलवार को हनुमान जी की पूजा होती है और प्रसाद के लिए बुंदिया (बुनिया) बाजार ले सिराज भाई ही लाते है और सबको बाटते है ! 

सुबह मैं अक्सर उनको देखते ही "सलाम वा आलेकुम" कहता हूँ इसपर जवाब मिलता है "राम राम भाई जान" 

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चलिए अब कुछ दिन के बाद की कुछ बाते बताता हूँ

"अरे आज जुम्मा है क्या ? " किसी ने मुझसे पूछा 
मैंने कहा "अ..अ..हा सायद आज शुक्रवार है ! 
जवाब आया " हा तभी तो सारे के सारे आज  ***** टोपी लगाये हुए है !

मैंने कहा नहीं यार ऐसे नहीं कहते "आज ही तो वो अपने इष्ट को याद करते है, एक साथ उसके (उपरवाले) के सजदे में सर झुकाते है !

हमें उनकी क़द्र करनी चाहिए और उन्हें सुभ कामनाये देनी चाहिए ! 

जवाब मिला " अरे नहीं शुभ कामनाये और इनको" कभी नहीं ! 

मेरा अगला मानसिक द्वन्द था "क्या ऐसा कर हम अपने इष्ट को खुस कर पाएंगे"

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उसके अगले दिन मै सिराज भाई को देखते ही उनके पास जाकर गले लगा कर जोर से कहा " सलाम वा आलेकुम भाई जान" अल्लाह आप को हमेसा खुस रखे ! 

!! आमीन !! 



बुत बनाने का हक किसने दिया ? (एक ब्यंग)

वाह ! क्या स्टाइल है !

पैगम्बर साहब भी नाराज नहीं होंगे और फोटोग्राफी भी हो जाएगी ! फिर फोटुए देखकर एक दुसरे को बतायेंगी देख ये सबनम है, ये आयेशा,  और ये आयेशा नहीं ये तो कोई और है ! पर कौन ?? पता नहीं ??

भई क्यों पुराने लबादे को ढो रहे हो ? दिल करता है तो खुल कर जियो और खुली हवा में साँस लो !!!!!!!!!!!!!१

सशस्त्र बल विशेषाधिकार और मणिपुर (इरोम शर्मिला)

आइये चाय पीते हुए कुछ " अलग थलग पड़े राज्य मणिपुर और ईरोम शर्मिला के बारे में जाने !

मणिपुर का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है ! मणिपुर के महाराजा ने भारत आजाद हो जाने के बाद (१९४७) में मणिपुर को संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया और अपनी संसद के लिए चुनाव करवाया, लेकिन कई घटनाक्रम के बाद १९४९ में महाराजा भारत में मणिपुर का विलय हो जाने के लिए सहमत हो गए ! पहले तो इसे "ग" श्रेणी में रखा गया बाद में सन १९६३ में केंद्र शासित राज्य बना और आखिरकार 1972 में इसे राज्य बना दिया गया !
मणिपुर का मतलब है "रत्नों से भरा-पूरा एक गाँव" पर आज ये आलम है की यहाँ हर तरफ लुट खसूट मची हुई है, सारे संगठन एक दुसरे के जान के दुसमन बने हुए है ! फिरौती और हत्या अब आम बात हो गई है ! मणिपुर में लगभग हर हफ्ते किसी न पार्टी का बंद होता है ! पिछले कुछ २५-३० सालो से पूरा मणिपुर एक गीली लकडी की तरह सुलग रहा रहा है ! फिरौती, गुमशुदगी, प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या के सैकड़ों मामले खबरों में आते रहते हैं ! हर तरफ अशांति फैली हुई हा ! 1958 में जब नागा आंदोलन चला तो इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक कानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून कहा जाता है. और सेना के इस "विशेषाधिकार" का मतलब क्या होता है ? आज ये हर कोई जनता है ! जैसे
बिना सर्च वारंट के किसी के घर की तलाशी ली जा सकती है.

किसी को भी अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने की छूट मिल जाती है.

और तो और केंद्र सरकार की मंजूरी के बगैर किसी भी अधिकारी या जवान को सजा नहीं दी जा सकती.
सिर्फ शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार या टॉर्चर करने का अधिकार सेना को मिल जाता है !
किसी नॉन कमीशंड अधिकारी जैसे कि हवलदार को भी सिर्फ शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार या टॉर्चर करने का अधिकार मिल जाता है !

समय के साथ-साथ मणिपुर के अलग-अलग जिले इस कानून के तहत लाए गए और 1980 तक ये पूरे मणिपुर में लागू हो गया ! जनता के साथ क्या क्या होता होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है ! वह की जनता के लिए सेना गेहू पीसकर आटा बनती है जिससे जनता दो वक़्त की रोटी सुकून से खा सके, और उस गेहू के साथ न जाने कितने घुन पिस जाते है !

2004 में दशकों से यहां के निवासियों के भीतर उबल रहा लावा पहली बार तब फूट निकला जब मनोरमा नाम की एक महिला को असम राइफल्स के जवान जबर्दस्ती उसके घर से उठाकर ले गए. अगले दिन उसका शव मिला जो उसके साथ हुए बलात्कार और प्रताड़ना की कहानी कहता था. मणिपुर में इस घटना से एक भूचाल आ गया. राज्य में हर जगह विरोध प्रदर्शन हुए. करीब एक दर्जन महिलाओं ने निर्वस्त्र होकर असम राइफल्स के मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया. उनके हाथ में तख्तियां थीं जिन पर लिखा हुआ था "इंडियन आर्मी रेप अस"



सेना के द्वारा आतंकवादियों के धर-पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मरे जाते है ! इसी का नतीजा है है की पिछले कई सालो से इरोम शर्मिला (एक सामाजिक कार्यकर्ता) सेना के विशेष अधिकार के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठी है ! सेना के द्वारा चलाये जा रहे खोजबीन अभियान के तहत सन २००० में लगभग ८-१० निर्दोष लोग मरे उस कत्लेआम से बिचलित हुई इरोम शर्मिला का अनसन सेना के विशेषाधिकार (अर्मड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट) के खिलाफ आज तक जरी है, पर उसका सुध लेने वाला कोई नहीं है !
उत्तर पूर्बी राज्य में मैंने अपने जीवन के लगभग २०-२२ साल बिताये है, कई मेरे स्थानिये दोस्त रहे है, साथ पढ़े है, खेले है, और वहा के जन जीवन को बहुत करीब से देखा है मैंने ! सेना की बर्बरता भी देखी है ! अपने एक दोस्त की सेना के द्वारा अंतिम बिदाई भी देखी है ! और उसके बाद उसके घर की बर्बादी भी, जहा जीवन के मायने ही खत्म हो गए थे ! घर के दुसरे सदस्यों के चेहरे पर खामोशी और एक सुन्य के सिवा कुछ नहीं रह गया था ! कुछ दिन बाद छोटे भाई की मानसिक हालत बिगड़ गई और उसकी भी अंतिम बिदाई हो गई, पिता इन सबको बर्दास्त नहीं कर पाए और वो भी चल बसे ! आज उनके घर पर बिरानी छाई रहती है ! एक दो लोग घर के अन्दर दिख जाते है सायद वो उनके कोई रिश्तेदार हो ! पर वो घर तो बीरन हो गया ! अब कुछ सालो से असम जाना बंद हो गया है पर वहा के दोस्तों से फोन पर कभी कभार बाते हो जाती है और बातो के बिच उस दोस्त की शान की बखान भी हो जाती है (शान जो उसके नाम का पहचान भी था...) शान जो उस छोटे से शहर का प्यारा भी था, हम दोस्तों का अजीज था, जो जा जाने कब आतंकी संगठन का सदस्य बन गया और उनकी गलत आदर्शो का बलि चढ़ गया
सेना और पुलिस का अपने गाँव या घर में आना किसी को अच्छा नहीं लगता ! सेना अपनी काम करती है जो उसे आदेश मिलता है अपने उच्चाधिकारियों के द्वारा ! अब अकेले मणिपुर में ही लगभग ३५-४० अलग अलग आतंकबादी संघठन है जो आज अपने हक़ की लडाई कम और लुट खसूट की लडाई ज्यादा कर रही है ! सरकार से मिलाने वाली धन का कम से कम तिहाई हिस्सा इनके बिच न बाँट जाये तब तक इनका (आज़ादी की लडाई) चलती रहती है, अपने स्थानिये दोस्तों को मैंने कई बार ये कहते और करते देखा है की पढ़ - लिख कर नौकरी कौन करे जब उसके बिना ही सब कुछ >>> ! स्कूल जाने वाले स्तर के बच्चे इस बात का पता लगाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते है की किस ठेकेदार को कितनी बड़ी सरकारी ठेकेदारी मिली है, कौन सी मोबाइल कंपनी कहा कहा अपनी टावर लगा रही है, किस दुकानदार की कमाई आजकल ज्यादा हो रही है, कौन सी नई प्राइवेट कंपनी उनके इलाके में लगाने जा रही है ! बिना किसी कारन के राज्य बंद की धमकी देकर ब्यावसायियो से पैसे ऐठना >>> इत्यादि इत्यादि ! इन सबसे निबटने के लिए सेना क्या करे ???? ... इरोम शर्मिला और उनके समर्थको से मेरा भी एक सवाल है की सेना के द्वारा चलाये जा रहे अभियान को पूरी तरह उत्त्तर पूर्बी राज्यों से हटा लिया जाना ही एक मात्र रास्ता बचा है ? या शांति और विकाश के रास्ते कही और से भी गुजरते है ? >>>>>

" मुम्बई - बोम्बे - बिहारी - भैया - मराठी मानुष "

क्या !
पुरे २०० सौ रुपये ? दोपहर का खाना भी ? और साथ ही पिक्चर देखने के लिए टिकट का पैसा अलग से. ! और तो और मंत्री जी जीत गए तो अपने तो बारे न्यारे हो जायेंगे ! कुछ ऐसी ही बाते दो दोस्त राहुल और दक्ष के बिच हो रही थी..फिर दोनों ने ये फैसला किया की आज स्कूल नहीं जायेंगे, स्कूल के बजाय नेताजी के रैली में जायेंगे, करना क्या है बस ट्रक के ऊपर बैठ कर रास्ते भर नेताजी के नाम के नारे लगाने है और मंच के पास खड़े होकर तालिया बजानी है !

आज कल कुछ ऐसा ही चल रहा है जहा जहा इलेक्शन के बाज़ार गर्म है ! यहाँ गुडगाँव में भी नेताजी के घर के सामने तक़रीबन १०० गाडिया रोज सुबह खड़ी दिखती है, जो नेताजी के प्रचार में जाने के लिए सज-संवर रही होती है लगभग सड़क के बीचोबीच, ट्रैफिक रूकती है तो रुके, नेताजी को इससे क्या लेना देना ?

अब देखिये ! महाराष्ट्र में राज ठाकरे का वही पुराना सगुफा " मुम्बई - बोम्बे - बिहारी - भैया - मराठी मानुष " कार्यकर्ताओ में जोश-खरोश की कोई कमी नहीं... मनसे कार्यकर्ता सनीमा हॉल में तोड़ फोड़ मचा रहे है, गुस्सा इस बात का है की " फिल्म में बोम्बे शब्द का प्रयोग क्यों किया गया ?

राज ठाकरे मुबारक हो.. ख्याति मिल रही है.. अब हकीकत क्या है.. यार यह सिन करण जौहर जी ने फिल्माया है या राज ठाकरे ने पता नहीं ? पर (***तिया) तो जनता बन रही है, दोनों आखे खोल कर बन रही है ! और फायदा इन दोनों (ब्यावासियो) का हो रहा है !

सभी नेताओं की नेतागिरी रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, बिजली, सड़क,स्कूल,हास्पिटल जेसे मुद्दे उठाने के दम पर चलती है, एक नया मुद्दा भी जुड़ गया है अब भाषा का ! देश के हालात कितने नाज़ुक है और ये k***त्ता (ब्यावासयी) अभी भी "बोम्बे और मुंबई" से बाहर नही आ रहा हे एक सीधा सा सवाल, अगर सभी ने मुंबई कहना शुरू कर दिया तो लोगो का क्या भला होगा और अगर नही कहा तो किसका क्या नुक़सान होगा ? पूरी दुनिया "बोम्बे" कहती हे और दूसरे देशो मे सबके रिकॉर्ड मे भी "बोम्बे" ही हे, जैसे : बोम्बे स्टाक एक्सचेंज, बॉम्बे हाई कोर्ट, बॉम्बे बी टी, इत्यादि इत्यादि !

ये कैसा राज? कैसी संकीर्ण मानसिकता ? कैसी गन्दी राजनीती है ? राज ठकरे जी के बच्चे इंग्लिश स्कूल में पढ़ते है और पिता बोम्बे/मुंबई की राजनीती की रोटिया सेककर उन्हें मंहगे प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश की शिक्षा दे रहे है ! महाराष्ट्र की जनता बेबकूफ बनकर उनके साथ चल रही है अंधो की तरफ !

क्या यह सब देखर अब कुछ दिन बाद देश के बाकी हिस्सों में ऐसी गन्दी राजनीती नहीं होने लगेगी ? देश में कहीं बम फट रहें, कही बाढ़ आ रही है, कहीं पानी नही है, कहीं खाने को नही है, और इनको नाम बदलने में दिलचस्पी है. कब तक जनता को मूर्ख बनाओगे, और सबसे पहले मै महाराष्ट्र के जनता से पूछता हूँ , क्या इस गन्दी राजनीती के बदले (सब लोग अगर मुंबई बोलने लगे तो)

आपके राज्य का विकाश हो जायेगा ?

बिदर्भ में अब किसान आत्मा हत्या नहीं करेंगे, ?

आपके लडके पढ़ लिखकर अब बेरोजगार नहीं रहेंगे. ?

राज्य में निम्न तबके जो मैला ढ़ोते है अब उन्हें मैला नहीं धोना पड़ेगा. ?

राज्य से बहार जाकर जो लोग रोजगार कर रहे है उनको वापस अपने राज्य में नौकरी राज ठाकरे देंगे..?

अगर इनमे से एक का भी जवाब "हा" में है तो आप खुसी खुसी राज ठाकरे को हीरो बनाये और देश को भाषावाद, जातिवाद के नाम पर अलग करे... पहले किसी और की नीति थी “फूट डालो राज करो” इसी के निति के बल पर अंग्रेज कई वर्षो तक हमारे ऊपर राज करते रहे है ! और अब ये राज ठाकरे इसी निति को अपना कर राज करने की गन्दी साजिस रच रहे है, जनता अब भी नहीं सचेत हुई तो राज ठाकरे जैसे लोग हमें जाती के नाम पर; भाषा के नाम पर; धर्म के नाम पर बांट कर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे ! अपने बच्चो को इंग्लिश स्कूल (बोम्बे स्कॉटिश) में पढ़ते है और सरकारी स्कूल में आम जनता के बच्चे किस तरह पढ़ते है, सब को पता है !

राज ठाकरे से : मुन्ना नेतागिरी ही करनी है तो, आदरणीय मोतीलाल, मोरारजी देसाई, बाबु जगजीवन राम जैसी नेतागिरी कर ! कुए से बहार निकल कर देख दुनिया बहुत बड़ी है, भारत बहुत बड़ा है, जिसमे अनेको भाषा-भाषी के लोग रहते है, जो पुरे विश्व में विख्यात है, उन्हें भाषा के नाम पर मत तोड़ !

कुछ इधर भी नजर डाले



कुछ इधर भी नजर डाले.. !


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शिमला में पीने के पानी की किल्लत ...
11 सितं 2009 ... 'पर्वतों की रानी' कहलाने वाला शिमला इन दिनों मूसलाधार बारिश के बावजूद पीने की पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा है। शिमला के नगर निगम के कमिश्नर ए. एन. शर्मा ने बताया ...
navbharattimes.indiatimes.com/.../4998617.cms

आने वाले दिनों में पानी की किल्लत ...
19 अगस्त 2009 ... आने वाले तीन दिन राजधानी के कई इलाकों में पानी की किल्लत रहेगी। जल बोर्ड ने इन इलाकों की जानकारी देते हुए अपील

खयाल Musings: पानी की किल्लत
11 फ़र 2009 ... पानी की किल्लत. हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट (लिंक) के अनुसार २०२० तक भारत के ज़्यादातर शहरों में पानी की काफी कमी होने वाली है। ऐसे में ज़रूरत है पानी बचाने की जैसे ...
ashishkachittha.blogspot.com/.../blog-post_11.html
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हमारे देश के महान बैज्ञानिको को सबसे पहले "बहुत बहुत बधाई" एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल करने के लिए, "A big salute"



लेकिन हमारे राज्य स्तर के, स्वास्थ्य मन्त्री, स्वास्थ्य अधिकारी, नगर सुधार न्याश, नगर निगम अधिकारी इत्यादि-इत्यादि क्या आम जनता को सुद्ध पानी पिलाने में कभी सक्षम हो पाएंगे ???

माफ करना माँ ! कुछ औरत के बारे में लिखा है ! पर गलत नहीं..

आज हर तरफ औरत की आज़ादी की बात हो रही है ! ठीक है आज़ादी होनी भी चाहिए क्योंकि विकाश और तरक्की पिंजरे में नहीं हो सकती, आज से पहले औरतो को घर के अंदर ही रहने को सलाह दी जाती रही है, घर के कम काज, बच्चो को पालना, और घूँघट में रहना ही औरतो की तक़दीर मान ली गई थी !
पर आज यह स्वरुप बदला है औरते घर से बहार निकली है और तरक्की की राह पकड़ मर्दों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही है, चले भी क्यों न उनको भी हक है पूरी आज़ादी से जीने की, आसमान छूने की, अपने मन की करने की जो मान चाहे ! जब समाज की बनायीं अन्य रुढिवादी परम्पराए टूट रही है तो ये क्यों नहीं
अपने ढंग से जीने का अधिकार सभी को है लेकिन समाज की मान्यताओ और परम्पराओ का उन्मूलन करके नहीं !


आज कुछ लड़कियों को खुलेआम सिगरेट पिटे हुए देखा जा सकता है ! पब में जाकर शराब पीते हुए और अपने साथी मित्र के साथ अश्लील से अश्लील हरकत करते हुए ! इस पर कुछ टिका टिपण्णी की जाय तो सुनाने को मिल जायेगा " तो इसमें बुराई क्या है ? क्या मर्द ये नहीं करते ? उनके लिए आज़ादी ? और हमारे लिए ...?
अक्सर लड़कियाँ तंग कपड़ों में कालेज, बाहर, मॉल या बाज़ार आती हैं और नतीजन ईव-टीजिंग को बढ़ावा मिलता है ।
इसपर कुछ लड़कियों का ये कहना है की हमारे साथ ही भेद भाव क्यों ? क्या हमें अपने मन पसंद कपडे पहनने का अधिकार नहीं है ? हमें आज़ादी से जीने का अधिकार नहीं ?


है कपडे पहनने का भी अधिकार है, मगर कुछ सलीका भी तो होता हो, मगर ऐसे बस्त्र जिसमे आधे से भी अधिक बक्ष नुमाया हो, नितम्ब और शारीर के अन्य अंग बखूबी दिखे, क्या ऐसे बस्त्र पहनने चाहिए आम बाज़ार या सर्ब्जनिक स्थान पर ! अगर हा तो यह गलत है (मेरे बिचार से) !


एक साधारण मनोबिज्ञान : पत्र पत्रिकयो के कवर पेज पर अक्सर कुछ इसी ढंग के फोटो सजे होते है, (सभी ने देखा है) जो अनायाश ही किसी को एक पल आकर्षित करता है ! इसके पीछे एक ही उद्देश्य होता है आकर्षित करना और उपयोग करवाना (खरीदवाना) !


अ़ब लड़किया अगर तंग कपडे पहनती है तो इसके पीछे उनका क्या मनोविज्ञान होता है ये तो वही जाने .. !


एक समाचार बीबीसी में पढ़ा " दो लड़कियों ने अपने पिता के ऊपर उनके साथ बलात्कार का आरोप लगाया और एक NGO ने आरोप सिद्ध कर पिता को सजा भी सुनवा दिया.. पर जाच पड़ताल के बाद पता चला की, दोनों लड़कियों ने अपने पिता के ऊपर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था ! इसलिए आरोप लगाया था की उनके पिता ने उन्हें दोस्तों के साथ पार्टी में जाने से मन कर दिया था !


दो बेटिय़ों ने अपने पिता के साथ जो कुछ किया वो उनकी छोटी सोच को दर्शाता है लेकिन पिता ने ना केवल अपनी बच्चियों को माफ किया बल्कि उन तमाम बेटियों को एक सबक भी दिया है जो अपनो को घर की बजाय बाहर तालाशती है।


मै अपने एक ब्लॉगर मित्र "सलीम खान" के एक लेख " नारी का व्यापक अपमान और भारतीय नपुंसकता Modern Global Women Culture and India " में टिपण्णी की थी जो इस प्रकार है आप भी पढ़े ! इस टिपण्णी के बाद मुझे एक फोन आया किसी लड़की का " जो की मुझे पहले तो मर्दों वाली दो-चार गलिया दी और कहने लगी हमसे जलते हो क्या ?" उसके बाद उसके किसी अन्य दोस्त का हल्का सा आवाज़ आया, "बंद कर न यार चल पहले ख़त्म कर कुछ लडखडाती आवाज़ में और लाईन कट गया !

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Ganesh Prasad ने कहा…


दोस्त मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की क्या कमेन्ट करू..

नारी के पक्ष में या बिपक्ष में , कुछ नारियो को देखकर तो लगता है.. जो हो रहा है ठीक है. पर बाकि (९०%) महिलायों / औरतो को देखकर लगता है की नहीं ऐसा उनके साथ ऐसा नहीं होना चाहिए..

अभी कल (06.09.09) ही की बात है ( यहाँ गुडगाँव के सदर बाज़ार में, मैं किसी काम से गया था वहा देखा की तीन आधुनिक लड़किया (MTV TYPE) सभी के नजरो का केंद्र बनी हुयी थी अपने उछल कूद के कारण, इतने में मै देखा की एक जो ज्यादा ही (MTV TYPE) लग रही थी एक पटरी वाली दुकान ( woman's inner wear) से एक ब्रेसिअर लेकर दुकानदार से पूछ रही थी भैया ये कितने का है और मेरे size का है क्या ? (काफी तेज आवाज) में ताकि कम से कम आसपास के कुछ लोग सुन सके और साथ ही साथ हँसे भी जा रही थी... साथ ही दूसरी लड़की हसते हुए उसे खीच रही थी और कहती जा रही थी "चल न यार क्यों भैया (भैया पे जोर देकर) को परेसान कर रही हैं

यह देखकर क्या लगता है.. आपको.. कैसी भावना जाग्रित होती है ऐसी लड़कियों के लिए, ऐसे में अगर कोई मनचला उनके साथ छेड़खानी करे तो.........

मै कोई कुंठित और मनोरोगी नहीं हूँ


और ना ही नारी विरोधी

September 7, 2009 5:35 PM


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हम आधुनिक बनाने के चक्कर में पश्चिम की गन्दगी को अपना रहे है ! लड़किया आधुनिक बनाने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही आधुनिक होने लगी है है ! कभी हमें पढ़कर कह पड़ेगी "male dominated society" का एक और "executive" और फिर "चोखेर बाली, औरतनामा, गंदी लड़की और न जाने कितने पेज पर भरते चले जायेंगे !

बनाना ही है तो इंदिरा गाँधी बनो, इंदिरा नुई, सानिया मिर्जा, सुनीता विलिअम्स, पि टी उषा बनो, ना की कुछ ऐसे जैसे  "मै टल्ली हो गई..........."



एक और तमाशा !

निठारी हत्याकांड में पंधेर बरी

एक और तमाशा, और कानून के साथ खिलवाड़ या सायद
कानून मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकती, दम है कानून में तो मुझे सजा देकर देखे, सायद पंधेर यही कहना चाहता है ! सब को पता है (कानून को छोड़कर) की निठारी में क्या हुआ था, दोषी पंधेर और सुरेंद्र कोली है या नहीं.?

सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर को 29 दिसंबर, 2006 को गिरफ़्तार किया गया था.

घटना को हुए ढाई साल से भी ज्यादा हो चूका है और कानून की कार्यवाई अब भी चल रही है ! वैसे कानून की कार्यवाई में कुछ ज्यादा ही समय लग रहा है, अमूमन ऐसा होता है की कानून के रखवाले तो कभी कभी एक मामूली से चोर को पकड़ कर एक ही दिन (या सायद कुछ ही दिन) में उसका चालान भी कर डालते है और कुछ दिनों के बाद पता चलता है की, पकडा गया चोर, चोर ही नहीं बहुत बड़ा स्मगलर, रेकेट सरगना और उसके ऊपर कई रेप और मर्डर के केस पहले से ही चल रहे थे.

वैसे कुछ मशले जैसे, अफजल गुरु, आमिर कसाब, बोफोर्स मामला, दायुद, बीरप्पन इत्यादि - इत्यादि ! माफ कीजियेगा बीरप्पन नहीं, बीरप्पन को मारना तो किसी के बस में था ही नहीं क्योंकि...

और जब उसकी बारी (----) आई तो बस दो दिन लगे और उसका सजा मुकरर कर दिया गया...

एक मानव बिज्ञान : हम दूसरो को दोषी तभी ठहराते है जब हम उसमे शामिल न हो...

महँगी पड़ी ! मूसलचंद बनना..

भाई साहब! हनुमान मूर्ति, करोल बाग अगला स्टाप ही है क्या ?

बस में खड़े खड़े मै अपने बाजु में बैठे एक सज्जन से पूछ लिया !

हा बेटे अगले गोल चक्कर पे उतर जाना ! उस सज्जन ने जवाब दिया !

आगे बहुत ही जाम था सो मैंने वही उतर जाना ठीक समझा ! पर वहा से काफी चलना पड़ा मुझे, झंडेवालान मेट्रो के निचे से होते हुए मै हनुमान जी की मूर्ति के पास बहुचा ! मुझे वहा से गुडगाँव बस स्टैंड तक जाना था और गुडगाँव के लिए बस पकड़नी थी, पर उसके पहले आधा किलो बेसन का लड्डू ख़रीदा और चल पड़ा पहले हनुमान जी का भोग लगाने !

रात के करीब नौ बजे (करोल बाग)गुडगाँव स्टैंड पर पंहुचा, सवारिया बहुत कम थी और जो थी वो भी किसी तरह कैब-वैब पकड़ने के चक्कर में थी. मैंने भी कोशिश की पर गुडगाँव बस स्टैंड तक के लिए कोई कैब नहीं मिली सो थक कर मैं स्टैंड पर आकर बैठ गया ! और बस का इंतजार करने लगा ! इसी तरह २० से २५ मिनट बीत गया पर हा मेरे साथ साथ कुछ और सवारिया भी थी वहा जो बस (हरियाणा रोडवेज) का इंतजार कर रही थी !

मैं भी फुर्सत में ही था ! सो बस का इंतजार ठीक ही लग रहा था ऊपर से गर्मी का मौसम ! अपने समय से बस आई और मैं बस में खिड़की के तरफ की सीट पर बैठ गया ! बस चल पड़ी , बस में कुल १०-१२ सवारिया ही थी !बस चल पड़ी और बहुत जल्दी धौलाकुवां बहुच गई, हा धौलाकुवां में कुछ सवारिया चढी और अ़ब कुल मिला कर २०-२५ सवारिया थी बस में ! उसमे एक लड़की भी थी धौला कुवां से चढ़ने वाली सवारियों में ! लड़की इसलिए याद है क्योंकि केवल दो ही लड़की थी पुरे बस में एक करोल बाग से चढी थी और एक धौलाकुवां से ! ज्यादा सवारी न होने के कारण बस बहुत जल्दी धौला कुवां से भी चल पड़ी ! वो लड़की अकेली थी, सफ़ेद सुट में, लेडीज सीट की ओर खिड़की के तरफ बैठ गई और जल्दी में बैठते ही मोबाइल पर लगी बातें करने, सायद बस में चढ़ते समय मोबाइल किसी से कनेक्टेड ही था !

धौलाकुवां से चढ़ने वाली सवारियों में दो लोग और थे उसमे से एक काफी देर तक बस में खडा रहा जबकी लगभग काफी सीटें खली थी पर वो (काला सा लड़का) उस लड़की के साथ वाली सीट पर बैठ गया ! बस फिर चल पड़ी ! हल्की हल्की बूंदा बंदी भी होने लगी मौसम काफी खुशनुमा लग रहा था ! आदतन बस में, कुछ (कुछ लोग जिसमे से मैं भी हूँ) दूसरी सवारियों के तरफ और पुरे बस में जरुर नजर डालते है ! मैंने भी वही किया , अचानक मेरी नजर उस सीट की तरफ रुक गई जहा वो (काला सा लड़का) और वो लड़की (सफ़ेद सुट) पहने थी ! लड़की अब भी मोबाइल पर ब्यस्त थी ! वो (काला सा लड़का) काफी उत्तेजित सा लग रहा था और अपनी नजर में सबसे नजरे बचाते हुए उस लड़की को अपनी बायीं कोहनी से छेड़ रहा था और लगातार छेड़ रहा था, लड़की का पुर ध्यान मोबाइल में लगा हुआ था या सायद वो मोबाइल पर काफी ब्यस्त होने की नक़ल कर रही !

चाहे जो भी हो पर वो (काला सा) लड़का अब उस लड़की के वक्षो को सहलाने की भी कोशिस कर रहा था ! इस बार लड़की ने उसका हल्का सा विरोध किया और लड़का थोडा डरा या सायद डरने का नाटक करने लगा ! लड़की ने विरोध में इतना किया की अपना पर्स अपने और उस लडके के बिच रख लिया और फिर मोबाइल पर वयस्त हो गई, पर उस लडके का उससे ज्यादा विरोध नहीं किया ! वो (कला सा) लड़का जिसकी हिम्मत काफी बढ़ चुकी थी इस बार फिर अपने कोहनी से नहीं बल्कि अपनी दाई हाथ से (लड़की जो उसके बायीं तरफ बैठी थी) लड़की के वक्ष को भिचा, लड़की इस बार सायद दर्द से कराह उठी और हल्का सिर्फ हल्का सा विरोध किया ! और फिर मोबाइल पर व्यस्त हो गई !

मैं इसबार अपने जगह से उठा और उस (काला सा) लडके का विरोध किया ! जितना हो सका अपने पुरे दम ख़म से उस लडके को डराने की कोशिश की और कहा " क्यों बे क्यूँ उस बेचारी लड़की को छेड़ रहा है" लड़का कुछ डरा और अपने डर को छुपाते हुए कहा "देखा क्या तुने ?"

मैंने कहा "हा देखा और काफी देर से देख रहा हूँ तेरी गन्दी हरकत" तेरे घर में तेरी बहन नहीं है क्या ! ये भी तो किसी की बहन होगी"

पर लड़का डरने के बजाय मुझे ही धमकी देने लगा " चुप कर बे, घणा आया हीरो पहलवान" ! उस लडके का दूसरा साथी भी उसी की तरफ से मुझे ही मारने-वारने की धमकी देने लगा ! बस की दूसरी सवारिया केवल हमारी बातें सुन रही थी पर किसी का support मुझे नहीं मिला ! मैं भी अकेले उनसे लड़ने का मन बना लिया था ! दुसरे ने कहा "तेरी चाची लगती है क्या ये, पूछ उससे, क्या मैंने ----- दबाई है उसकी ! लड़की अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी ! पर उस लडके का विरोध कर उसने मेरा साथ तनिक भी ना दिया

और बात बढ़ते देख चुपचाप वह वहा से उठकर आगे की तरफ बढ़कर एक खाली सीट पर बैठ गई ! अब दोनों लडके मिलकर मुझे डराने की कोशिश करने लगे ! बस अब तक (सुखराली) पहुच चुकी थी ! वो दोनों लडके सुखराली के ही थे या किसी कारन वस् वही उतरने लगे और मुझे बार बार धमकिया दे रहे थे "उतर तू सुखराली, बताते है तेरी चाची को कैसे छेडा"

वो दोनों तो वही उतर गए, पर लड़की सायद गुडगाँव तक जाने वाली थी और मैं भी गुडगाँव स्टैंड तक ! अब बस में खामोशी थी, सायद सभी कुछ न कुछ बोलने वाले थे पर सब खामोश थे, लड़की भी खामोस थी, मै भी खामोश था, सवारिया भी खामोस थी ! और बस ड्राईवर भी खामोशी से ही बस चला रहा था ! चारो तरफ खामोशी थी !

गुडगाँव बस स्टैंड आया और सभी सवारिया उतरने लगी ! एक नजर मै उस लड़की को जरुर देखा जो अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी !

मैं उदास जरुर था पर एक बात सोचने पर जरुर मजबूर हुआ की "क्यों हम सभी बड़ी बड़ी बातें करते है और जब जरुरत आन पड़ती है तो चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं)

कहानी नहीं सत्य घटना है और पुर्णतः सत्य है

सब अल्लाह की मर्जी हैं !

८४ शादिया १७० बच्चे,

रोज के तीन बोरी चावल खाने में खर्च हो जाता है, आय का कोई साधन नहीं है ! फिर भी दिन कट रहे है सब अल्लाह की मर्जी से !
८४ पत्नियों में से एक के ये कहने पर की मैं इनसे शादी नहीं करुँगी क्योंकि ये बुजुर्ग हैं, उससे कहा गया की ये सीधे अल्लाह की मर्जी है की तुम इनसे शादी करो, और उसने अल्लाह की मर्जी से शादी कर ली, वैसे इसलाम में ४ शादियों तक जायज माना जाता है, पर जनाब मुह्हम्मद बेल्लो अबुबकर का कहना है, इसलाम में चार शादियों तक जायज बताया गया है पर उससे ज्यादा शादी करने पर कोई गुनाह तय नहीं किया गया है.

सब अल्लाह की मर्जी है...






सौजन्य : http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/7547148.stm

बदन का खून खौलने लगता है

जिस देश में संसद पर आक्रमण के लिये मृत्युदण्ड प्राप्त आतंकवादी को फाँसी नहीं होती और उसका खुलेमाम बचाव किया जाता है वहीं मालेग़ाँव विस्फोट के लिये आरोपी बनायी गयी साध्वी को मीडिया द्वारा दोषी सिद्ध होने से पहले ही आतंकवादी ठहरा दिया जाता है। केन्द्र सरकार के घटक दल खुलेआम इस्लामी आतंकवादी संगठन सिमी के पक्ष में बोलते हैं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश की नागरिकता देने की वकालत करते हैं और विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों के पाठ्यक्रम को प्रतिबन्धित करने की बात करते हैं क्योंकि वे शिवाजी, राणाप्रताप को आदर्श पुरुष बताते हैं। रामविलास पासवान का तर्क है कि विद्याभारती के विद्यालय गान्धी के स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका पर प्रश्न खडे करते हैं इसलिये इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये। अर्थात देश में विचारों की स्वतंत्रता पर आघात होगा। इतना तो स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति एक बार फिर अत्यंत कठिन दौर से गुजर रहा है जब सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दू होना अपराध ठहराने का प्रयास किया जा रहा है।
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ऊपर की पंक्तिया और ऐसे ही चिठा पढ़ते हुए बदन का खून खौलने लगता है. जी करता है कोई अनजानी शक्ति मिल जाये और उन सरे भ्रष्ट नेताओ और हुक्मरानों को सरेआम फासी पर लटका दु जो ये करते है ! क्या तर्क बनता है की मृत्युदण्ड प्राप्त आतंकवादी (अफजल गुरु) को फाँसी नहीं हुई और वो आजतक खुलेआम घूम रहा है. ! शिवाजी, राणाप्रताप, भगवन राम की बाते करना अपने ही देश में एक गाली हो गया है, ऐसी बाते करे तो अपने मुसलमान भाइयो का दुश्मन मान लिया जाता है.!
क्या उदार होने की यही सजा है ! ऐसी ही बाते जब मै अपने साथी मित्रो के साथ करता हूँ तो पता है वो क्या कहते है
" यार *** सर क्या दिन भर पढ़ते और हो और लिखते रहते हो.. छोडो ये सब, सब के सब हम पब्लिक को उल्लू बनाने के लिए ये नेता लोग ऐसा करते रहते है.! साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को अपराध साबित होने के पहले ही अपराधी (देश द्रोही) करार कर दिया जाता है और देश द्रोही (अजमल आमिर कसाब) को जेल में दामाद के तरह treat किया जाता है. अफजल गुरु को आज तक सजा नहीं हो पाई और कभी होगी भी नहीं. " इसलिए इन सब बातो को छोडो और कुछ नयी उमंग भरी प्रोग्रेसिव बाते लिखो ! जिससे मन को सुकून मिले

वो कट्टर है बात बात (धर्म) की बात पर लड़ते है तो लड़े, हम क्यों अपना energy loss करे ! अपनी ताकत को विकाश में खर्च क्यों न करे ! मदरसे (जिहाद) की पढाई कर हम किसी बड़े ओहदे की दावेदारी नहीं पेश कर सकते.

एक हमारे मुहम्मदन मित्र है, जिनकी अक्सर ये सिकायत रहती है हमें हिंदी या इंग्लिश कम आती है इसलिए हम आगे नहीं बढ़ पाए (वो एक sampling टेलर है) और अभी कुछ ही दिन हुए है वे एक दिन हाथ मिलते हुए बोले भाई जान मुझे जार्डन का वीसा मिल गया है, जा रहा हूँ सम्प्लिंग टेलर के तौर पर १३४ JOD मिलेंगे ८ घंटे के (यानि १३४ x 69.40 = Rs 9300/-) जबकि यहाँ भी एक sampling टेलर जो की कुछ इंग्लिश या हिंदी पड़ना जनता हो उसकी तनख्वा १२०००/- है !

इसलिए हमें अपना ध्यान विकाश और तर्रकी में लगाना चाहिए नकि इन बे सर पैर की बातो में ...

क्या सुनना पसंद करेंगे आप ?

ये लडके हमारे बारे में क्या क्या बाते करते होंगे.?
दूसरी लड़की : बिलकुल हमारे तरह जैसे हम उनके बारे में बाते करती है
पहली लड़की : हाय राम इतनी गन्दी बाते करते है लडके.

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यह एक चुटकुला है, पर है बिलकुल सच ! क्या क्या कहा आपने कहा की बात ले आया मै, जनाब बिलकुल संच फ़रमाया है मैंने ! बिस्वास न हो तो किसी लड़की से कुछ देव दास वाले अंदाज में बाते कर के देख लीजिये आपको पता चल जायेगा ! सारी की सारी लड़किया आपको सायद भैया का खिताब दे देंगी या नाम के साथ एक सरनेम "फलाना या चिलाना जी"

तो जनाब "फलाना या चिलाना जी" सुनना पसंद करेंगे या "hi dear kal kaisa raha ! kya kya kiya (with smile)" सुनना पसंद करेंगे ! अगर अंग्रेजी वाला शब्द सुनना चाहते है तो ...

महान है हमारा लोकतंत्र


एक खबर !

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की जांच के लिए गठित लिब्राहन आयोग ने १७ साल बाद मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।

मंगलवार को जस्टिस एम.एस. लिब्राहन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। उस समय गृह मंत्री पी. चिदंबरम भी वहां मौजूद थे। रिपोर्ट में क्या है, अभी इसका खुलासा नहीं हो पाया है। लिब्राहन आयोग के कार्यकाल को 48 बार बढ़ाया गया।

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महान है हमारा लोकतंत्र, महान है हमारे नेता, महान हैं हमारा राज तंत्र, जहा एक आयोग बैठाई जाती और उसका निष्कर्ष १७ साल बाद आता है और तो और उसमे क्या है इसका खुलासा भी अभी तक नहीं हुआ है , जो की एक सम्बेदंशील मुआमले पर बैठाई गई आयोग थी तो बाकी के आयोग का क्या होता होगा ??? जो .....

क्या सरकार इस बात का जवाब देगी की आयोग के पुरे कार्यकाल में कितने पैसे खर्च हुए ? आज तक जितने भी आयोग गठित हुए है सभी के रिपोर्ट जमा हुए ? या सरकार ही भूल गई की कोई आयोग भी गठित हुआ था ?

१७ साल !!! यार १७ साल, कम नहीं होते ! मुझे याद है जब मैं कक्षा ७ वी में था तब की बात है उस दिन हमारा स्कूल बंद हो गया था ! स्कूल बंद होने का कारण बाद में पता चला की "दो भाइयो ने दूसरो की बात सुन कर अपने ही घर में आग लगा कर एक दुसरे को ही लहूलुहान कर लिए थे"

परसाद फूफा नमस्ते !

ये सरलवा कहा रे ? येतना जल्दी में कहा ? ताडीखाने के पास बैठे 'हल्खोरी प्रजापति और चनन सिह' ने टोक ही दिया ! कवनो के घर फिर कोई जानवर मर गया है क्या ? जो ....

गाँव के अन्य "कुछ उची" जाती के लोग सरल को सरल चमार या सरलवा कहने में अपनी बड़प्पन और उची जाती के होने का परिचय देते है !

साईकिल पर सरल के पैर आज कुछ जयादा ही तेजी से चल रहे हैं ! आज उसका लड़का (प्रदीप) शहर से गाँव आया है न पुरे 1 साल बाद ! क्या खिलाऊ क्या पिलाऊ प्रदीप्वा को इसी उधेड़बुन में सरल कुछ ज्यादा ही जल्दी में पंसारी की दुकान पर बहुच जाना चाहता है...

सरल और उसके टोले (मोहल्ले) वाले अब मरे हुए जानवरों के खाल नहीं उतारते और ना ही अब मैला ढोते हैं ! और यही बात ताडी पीते लोग (प्रजापति और चनन सिंह) को खटकती है और इसलिए सरल को सरलवा या चमरा कह कर अपनी उचता का परिचय देते रहते हैं !

यह सब अच्छा काम नहीं है, सरल सबको कहता है ! अपने बच्चो का पढाओ-लिखाओ हुसीयार बनाओ ! मरे हुए जानवरों को मत छुयो, मैला मत उठाओ, मेहनत-मजदूरी करो अ़ब तो सरकार भी रोजगार गारंटी योजना चला रही हैं...उसका लाभ उठाओ...पढो, पढाओ बच्चो को हुसीयार बनाओ... यही बात उची जाती के लोगो को खटकती है...!

का रे परदिपावा, कब आया तू सहर से एक बड़े बुजुर्ग लल्लन बाबा चाय की चुस्की लेते हुए प्रदीप को देखकर पूछ बैठे !
चाचा आज ही आये है नमस्ते - प्रदीप ने हलवाई 'परसाद फूफा' के योर देखते हुए जवाब दिया !

उससे ऐसी जवाब की उम्मीद नहीं थी लल्लन बाबा को सो हलवाई की तरफ देखकर कहे देखो इ चमरा के लईका को कैसे बेसरमी से बोल रहा है... तनिको लूर-सहूर नहीं है बड़कन से कैसे बात करत जात हैं ! पढ़ लिख कर शहर से दुई पैसा क्या कमा लिए बड़कन का आदर सत्कार ही भूल गए! लल्लन बाबा को उम्मीद थी की प्रदीप उन्हें लगभग रोते हुए, कमर के बल झुक कर लल्लन बाबा के पैरो को छूकर ये कहे "सब आपकी किरपा है बाबा"

बाबा से ऐसी उलाहना सुन कर भी प्रदीप हसते हुए पास ही के एक लकडी के तखत पर बैठ गया, मुडी-तुडी और लगभग फटी हुई आज ही की अख़बार उठाकर हलवाई से बोला... परसाद फूफा नमस्ते, एगो गरमा-गरम एस्पेशल चाय पिआव (हलवाई सभी छोटे-बड़े के बिच परसाद फूफा के नाम से मशहूर थे)

अपने लिए 'परसाद फूफा नमस्ते' सुनकर परसाद फूफा मन ही मन खुश होते हुए चाय की एक केतली चूल्हे पर चढाने लगे ! कच्चे अधजले कोयले के वजह से पुरे गुमटी में धुया फैला हुए था ! उस धुएं भरे गुमटी में बैठकर 'परसाद फूफा' के हाथ से बने चाय और आलू के पकोडे खाने का स्वाद पुरे गाँव में मशहूर था !

चाय बना और परसाद फूफा ने चाय प्रदीप की योर बढाया, कुछ घबडाते हुए जैसे कोई देख ले तो, उनपर मुक़दमा कचहरी हो जाये.

अरे बौराए गए हो क्या परसाद ? इ चमरा के लईका को सीशा के गिलास में चाय दे रहे हो और फिर इसी गिलास में कल हमें भी चाय पिलाओगे अउर हमर धरम भ्रस्त करोगे ! अरे कोई दुसरे बर्तन में चाय पिलाओ ! लल्लन बाबा बोल पड़े ! चमार, सियार और भूमिहार को एक ही तराजू में तौल रहे हो ! तुम तो चाय का दुई रूपया झट से पल्ले में धर लोगे, हमार धरम भ्रष्ट होगा सो अलग !

पास ही जमीन पर बैठकर चाय पीती हुयी 'बहीरी' डोमिन (Sweeper) से यह सब देखा न गया और बोल पड़ी ! अरे चुप करो बाबा रोज दारूभट्टी के पास उ कलुआ मुसहर के पैसे से कच्ची शराब और उसी के दोने से उसीनल (boiled) चाना खाते हो तो तुम्हारा धरम भ्रष्ट नहीं होता ! दारू पिने के बाद महतो के दुकान से पाच रुपीया के मुर्गा के गोडी खरीद कर खाने में कोई धरम भ्रष्ट नहीं होता है क्या ? अउर उ दिन जब कलुआ मुसहर के संग उसकी मेहरिया रही, अयूर तू उसके बेलाउज में हाथ डाले के कोशिश करत रहा तब तोहर धरम भ्रष्ट नहीं होता रहा ? एक ही सास में बोल गई 'बहीरी', जैसे आज ही अपने मन का सारा भड़ास निकाल लेगी अउर बड़कन के खिलाफ उसके मन में जितना भी जहर भरा है उसको उगल देगी !

प्रदीप को तो कुछ समझ ही नहीं आया की क्या बोले और न बोले ! तब तक कुछ लडके जो प्रदीप के ही उम्र के थे वहा आ चुके थे और सारा माजरा समझते हुए, उनमे से एक जो की उची जाती का ही था बोला पड़ा, अरे लल्लन बाबा आप तो उच-नीच का बिज बोकर अपने फायदे का फसल काट चुके, अपनी झूठी शान बनाये रखने के लिए उच-नीच के बहाने अपनी पूजा करवाते रहे, बहुत हो चूका ! अब तो हम नवयुकवो को भाईचारा और बराबरी का बिज बोने और तरक्की का फसल कटाने दो !

का हो प्रदीप भाई कैसे हो ? कब आये ? वह लड़का प्रदीप से बोल पड़ा, अरे चाय पियो, बड़े बुढो के बात का बुरा नहीं मानते ! इनकी थोडी उम्र हो गई और दिन रात यही पड़े रहते है सो इनकी मत मरी गई है ! इनको क्या पता इ सब छोट, बड, उच, नीच कुछो नहीं होता है ! छोडो जाने दो चाय पियो और बताओ, सहर में सब कुशल मंगल तो रहा न ? .....

लल्लन बाबा भुनभुनाते हुए दूसरी योर चले गए जहा कुछ ही दुरी पर कुछ लोग चिलम में भरने के लिए गांजे की मर्रम्त कर रहे थे !

क्या यही प्यार है..

चलते-चलते कहीं रूक जाती हूं , बैठे - बैठे कहीं खो जाती हूं मैं , कुछ अच्छा नहीं लगता , क्या यही प्यार है ?

लड़का : यह कमजोरी के लक्षण है बेवकूफ , ग्लोकोस पियो करो ...

बोलो और बेधड़क होकर बोलो

यार वो बहुत बोलता, है पर है सही... लेकिन यार उसको तो शर्म भी नहीं आती बोलने में - तो क्या हुआ शर्म ही करता तो बोल कैसे पता...और आज देखो वो लोग उसकी कितनी तारीफ कर रहे हैं....

कुछ ऐसे ही वाक्य हम भी कभी कभी बोलते है या सुनाने को मिल जाता है किसी के बारे में ... क्यों मैंने सच कहा न ? जनाब कहना ये चाहता हूँ की बोलो और बेधड़क होकर बोलो, हम अपने आसपास, दोस्तों की महफिल में, सोसाइटी में, बस में, किसी मंच पर, या कही भी कुछ बोलते-बोलते रह जाते है और बाद में सोचते है मुझे भी वहा कुछ बोलना चाहिए था, पर अब पछताए होत क्या जब....

कुछ लोग अक्सर अपनी बात दुसरो के सामने नहीं रख पाते है, मन की बात मन में ही रख लेते है, सोचते है बोलूँगा तो कैसा लगेगा, बोलते हुए मेरे हाव-भाव कैसे होंगे, सामने वाला मेरे बात का कैसे प्रतिक्रिया देगा, मेरे बात को गंभीरता से लेगा की नहीं..ब्ला.. ब्ला..ब्ला......

तो बोले खूब बोले, शर्म लिहाज छोड़कर, अपनी मन की बात बोले, अपनी प्रतिक्रिया दे, कुछ प्रतिवाद करना हो तो जरुर करे ये कभी अपने मन में हिन् भावना को उपजने न दे. पुरे बिश्वास के साथ बोले सामने वाले के आखों में आखे डालकर बात करे, जो भी बोले विश्वाश के साथ बोले और फिर देखिये आपके बिचार का लोग कैसे स्वागत करते है...

नोट : यह मेरे निजी अनुभव पर आधारित है... जनाब कुछ गलत कहा हूँ तो मुआ.....फ..... पर......

'जय हो, स्‍लमडॉग और' चड्डी की भिड़ंत

'जय हो, स्‍लमडॉग और' चड्डी की भिड़ंत

अंग्रेजी भाषा को तलाश है अपने मीलियन वर्ड यानी दस लाखवें शब्द की और इसके लिए हिंग्लिश के तीन शब्द जय हो, स्लमडॉग और चड्डी को मौका मिला है. देखना ये है कि क्या जय हो की एकबार फिर से जय होगी. स्लमडॉग का फिर से डंका बजेगा या फिर इस शब्दों की कबड्डी में चड्डी जीतेगी

बहुत ही अच्छा भिडंत ! बहुत ही नायब ! दो ही सूरत में जीत हमारी ही होगी, 'जय हो, स्‍लमडॉग और 'चड्डी' आब बड़े लोगो का शब्द बन जायेगा !

मेरे ख्याल से चड्डी को "ताज पहनाया जाना चाहिए" क्योंकी चड्डी का नाता 'मोगली' से भी तो है..


नोट : यह केवल लेखक का बिचार है ! कोई मान हानी का दावा न करे !

दिल का दर्द ! क्या जाने कोई !



एक बार राज ठाकरे से भी इस मसले पर बात चित करना चाहिए.....
क्यों राज साहब आपका कोई नजदीकी वाला तो इनमे नहीं होगा....
क्या कहा .... कुछ सुनाई नहीं पड़ा ... क्या आप इस मसले पर बात नहीं करना चाहते... अरे हा आप तो "Established" हो चुके है....

रिजल्ट २००९ ! पैसा कमाने एक नया साधन !

5-5 रूपया लागी , एगो रिजल्ट देखे खातिर !

एल रोल नंबर के रिजल्ट के बारे में जानने के लिए 5 रूपया लगेगा ! भतीजा, आकर अभी अभी मुझे बताया ठीक १० मिनट पहले इस समय सुबह का 11.31 मिनट हो रहा है और तारीख है 30.05.09).

गाँव के कुछ समझदार लडके सुबह से ही गाँव से करीब २०-२२ किलोमीटर दूर शहर में उस समाचार पत्र या कोई ऐसा माध्यम का पता लगाने के लिए गए हुए है जिससे दसवी (Up Board) के परीक्षा परिणाम हो , और वे हर विद्यार्थी से ५-५ रुपये लेकर उसका परीक्षा परिणाम बताएँगे !

है न एक अच्छा माध्यम जिससे वे बच्चे थोडा पैसा कमा लेंगे, पर बच्चो मोबाइल कंपनिया भी है बाज़ार में जो दो रुपये ४० पैसे में रिजल्ट बता रही है और वो भी मोबाइल पे !!!!

मैं दोहरी मानसिकता लेकर जीता हूँ


दोहरी मानसिकता,

क्यों हम (मेरा मतलब है मैं) क्यों मैं दोहरी मानसिकता लेकर जीता हूँ ! और सबको लगता है कितना अच्छा आदमी हूँ मैं, मेरे बारे में प्रचलित है की मैं काफी अच्छा और सीधा आदमी हूँ ! जबकि मैं वैसा नहीं हूँ ! मैं अपने एक दोस्त जो की लगभग मेरे ही जैसा है जब मिलते है, बात करते हुए तो पता ही नहीं चलता की क्या - क्या और अश्लीलता की कितनी हदों को पर कर जाते है हम ! साथ काम करने वाली लड़कियों के बारे में, उनकी शारीरिक बनावट और उनके ब्याक्तिगत (काल्पनिक) बातो को जानने का दावा तक कर डालते है !

आज एक ब्लॉग में पढ़ा (देवी देवतायों के जननांग नहीं होते) क्यों मूर्तिकर मूर्तियों को गढ़ते समय उनके जननांगो को नहीं गड़ता ! इसके पीछे क्या वास्त्विकता है ! क्या हमारा ये देवी देवतायों के प्रति श्रधा है, या कुछ और...

ब्लोगर को कमेंट्स भी डाले और मन ही मन सोचने लगा "की क्यों हम सच्चाई स्वीकार नहीं करते" की हम ...

एक दंतकथा " यक्ष को दिया गया युधिष्ठिर का जवाब बड़ा मायने रखता है कि "अगर मेरी माता माद्री मेरे सामने नग्नावस्था में आ जाएँ तो मेरे मन में पहले वही भाव आयेंगे, जो एक युवा के मन में किसी ..."

क्यों जब मेरी बिटिया के साथ कोई लड़का हंस-हंस बाते करता है तो मैं अपने बिटिया को डांट कर कहता हूँ घर के अंदर जा और मम्मी के साथ घर का काम कर ! और सबसे नज़ारे बचाते हुए गली के अन्य लड़कियों को देखता हूँ और उनसे नजदीकिया बनाने की हर संभव कोशिश में लग जाता हूँ और मौका मिलते ही...


*** दोस्तों कमेंट्स जरुर डाले और मेरी गलतियों को जरुर बताये, इससे मुझे आगे लिखने की उर्जा मिलेगी

सांप वाला लड़का ...

तू तो राज कुमार लगता है ! तेरे चेहरे की लाली बताती है तू जरुर एक दिन बड़ा आदमी बनेगा ! (जबकि मेरा रंग काला हैं)

एक १४ से १५ साल के लडके ने मुझे टोका ! हाथ में एक नन्हा सांप का बच्चा ले रखा था ! कपडे काफी गंदे से पर गेरुए रंग का पहन रखा था ! कंधे पर एक मैला सा झोला लटक रहा था ! सांप को बिलकुल मेरे चेहरे के करीब लाकर फिर बोला, "भक्त दो रुपये भोलेनाथ को दान कर, तेरे बिगडे कम बनेंगे, तू जिस कम के लिए जा रहा है उसमे तरक्की मिलेगी ! दो रुपये भोलेनाथ को दान कर !

इतने में उसका दूसरा साथी आया और उसे उसका हाथ पकड़ कर लगभग जबरजस्ती दूसरी तरफ लेकर चला गया ! क्योंकि उस लडके को मैं एकदिन इसी वजह से एक जोरदार थप्पर लगा चूका था और पकड़ कर पुलिस के पास ले जाने की धमकी दे चूका था !

क्योंकि ये लोग रोज किसी न किसी को .........

लालू जी, पासवान जी, ... सब बेरोजगार हो गए...

ब्रेकिंग न्यूज़ के स्क्रोल में पढ़ा " लालू जी, पासवान जी, ... सब बेरोजगार हो गए हैं ".

एक नेता जी का बयान "हम तो सोनिया जी को बिना सर्त समर्थन देंगे" !

मैंने सोचा चलो मंदी की मार इनके ऊपर भी पड़ी हैं ! नेता भी क्या हमसे अलग होते हैं ? जो इनके ऊपर मंदी की मार नहीं पड़ेगी ! जनाब ये तो हमारे नुमाइन्दे है ! इन्हें भी तो पता चले मंदी के मार से बेरोजगार हुए लोगे का दर्द क्या होता है ?! अब पता चलेगा जब सोनिया जी भी इन्हें ३४०० सरकारी रेट के बजाय २३००/- रुपये प्रति माह पर नौकरी देगी और वो भी पुरे १४ घंटे रोज के नौकरी करने के बाद !


अब सचाई पता चली है, की क्यों प्राइवेट कंपनियों में आज भी यानि (१९.०५.०९ तक) लडके-लड़किया मात्र २३००/- रुपये प्रति माह पर १२ - १४ घंटे कम करने को तैयार हो जाते है !

एक नादान (समझदार ) लड़की

भाई साहब! हनुमान मूर्ति, करोल बाग अगला स्टाप ही है क्या ?
बस में खड़े खड़े मै अपने बाजु में बैठे एक सज्जन से पूछ लिया ! हा बेटे अगले गोल चक्कर पे उतर जाना ! उस सज्जन ने जवाब दिया ! आगे बहुत ही जाम था सो मैंने वही उतर जाना ठीक समझा ! पर वहा से काफी चलना पड़ा मुझे, झंडेवालान मेट्रो के निचे से होते हुए मै हनुमान जी की मूर्ति के पास बहुचा ! मुझे वहा से गुडगाँव बस स्टैंड तक जाना था और गुडगाँव के लिए बस पकड़नी थी, पर आधा किलो बेसन का लड्डू ख़रीदा और चल पड़ा पहले हनुमान जी का भोग लगाने !

रात के करीब नौ बजे (करोल बाग)गुडगाँव स्टैंड पर पंहुचा, सवारिया बहुत कम थी और जो थी वो भी किसी तरह कैब-वैब पकड़ने के चक्कर में थी. मैंने भी कोशिश की पर गुडगाँव बस स्टैंड तक का कोई नहीं मिला ! थक कर मैं स्टैंड पर आकर बैठ गया ! और बस का इंतजार करने लगा ! इसी तरह २० से २५ मिनट बीत गया पर हा मेरे साथ साथ कुछ और सवारिया भी थी वहा जो बस (हरियाणा रोडवेज) का इंतजार कर रही थी !

मैं भी फुर्सत में ही था ! सो बस का इंतजार ठीक ही लग रहा था ऊपर से गर्मी का मौसम ! अपने समय से बस आई और मैं बस में खिड़की के तरफ की सीट पर बैठ गया ! बस चल पड़ी , बस में कुल १०-१२ सवारिया ही थी ! बस बहुत जल्दी धौलाकुवां बहुच गई, हा धौलाकुवां में कुछ सवारिया चढी और अ़ब कुल मिला कर २०-२५ सवारिया थी बस में ! उसमे एक लड़की भी थी धौला कुवां से चढ़ने वाली सवारियों में ! लड़की इसलिए याद है क्योंकि केवल दो ही लड़की थी पुरे बस में एक करोल बाग से चढी थी और एक धौलाकुवां से ! ज्यादा सवारी न होने के कारण बस बहुत जल्दी धौला कुवां से भी चल पड़ी ! वो लड़की अकेली थी, सफ़ेद सुट में, लेडीज सीट की ओर खिड़की के तरफ बैठ गई और जल्दी में बैठते ही मोबाइल पर लगी बातें करने, सायद बस में चढ़ते समय मोबाइल किसी से कनेक्टेड ही था !

धौलाकुवां से चढ़ने वाली सवारियों में दो लोग और थे उसमे से एक काफी देर तक बस में खडा रहा जबकी लगभग काफी सीटें खली थी पर वो (काला सा) उस लड़की के साथ वाली सीट पर बैठ गया ! बस फिर चल पड़ी ! हल्की हल्की बूंदा बंदी भी होने लगी मौसम कभी खुशनुमा लग रहा था ! आदतन बस में, कुछ (कुछ लोग जिसमे से मैं भी हूँ) दूसरी सवारियों के तरफ और पुरे बस में जरुर नजर डालते है ! मैंने भी वही किया , अचानक मेरी नजर उस सीट की तरफ रुक गई जहा वो (काला सा) और वो लड़की (सफ़ेद सुट) पहने थी ! लड़की अब भी मोबाइल पर ब्यस्त थी ! और लड़का वो (काला सा) काफी उत्तेजित सा लग रहा था और अपनी नजर में सबसे नजरे बचाते हुए उस लड़की को अपनी बायीं कोहनी से छेड़ रहा था और लगातार छेड़ रहा था, लड़की का पुर ध्यान मोबाइल में लगा हुआ था या सायद वो मोबाइल पर काफी ब्यस्त होने की नक़ल कर रही ! चाहे जो भी हो पर वो (काला सा) लड़का अब उस लड़की के वक्षो को सहलाने की भी कोशिस कर रहा था ! इस बार लड़की ने उसका हल्का सा विरोध किया और लड़का थोडा डरा और पूरा डरने का नाटक करने लगा ! लड़की ने विरोध में इतना किया की अपना पर्स अपने और उसके बिच रख लिया और फिर मोबाइल पर वयस्त हो गई पर उस लडके का उससे ज्यादा विरोध नहीं किया ! वो (कला सा) लड़का जिसकी हिम्मत काफी बढ़ चुकी थी इस बार फिर अपने कोहनी से नहीं बल्कि अपनी दाई हाथ से (लड़की जो उसके बायीं तरफ बैठी थी) लड़की के वक्ष को भिचा, लड़की इस बार सायद दर्द से कराह उठी और हल्का सिर्फ हल्का सा विरोध किया ! और फिर मोबाइल पर व्यस्त हो गई !

मैं इसबार अपने जगह से उठा और उस (काला सा) लडके का विरोध किया ! जितना हो सका अपने पुरे दम ख़म से उस लडके को डराने की कोशिश की और कहा " क्यों बे क्यूँ उस बेचारी लड़की को छेड़ रहा है" लड़का कुछ डरा और अपने डर को छुपाते हुए कहा "देखा क्या तुने" मैंने कहा "हा देखा और काफी देर से देख रहा हूँ तेरी गन्दी हरकत" तेरे घर में तेरी बहन नहीं है क्या ! ये भी तो किसी की बहन होगी" उस लडके का दूसरा साथी भी उसी की तरफ से मुझे ही मारने-वारने की धमकी देने लगा ! बस की दूसरी सवारिया केवल हमारी बातें सुन रही थी पर किसी का support मुझे नहीं मिला ! मैं भी अकेले उनसे लड़ने का मन बना लिया था ! दुसरे ने कहा "तेरी चाची लगती है क्या पूछ उससे, क्या "xxxx" पकडी है मैंने उसकी ! लड़की अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी ! पर उसके सवाल का जवाब नहीं दिया

और बात बढ़ते देख चुपचाप वह वहा से उठकर आगे की तरफ बढ़कर एक खाली सीट पर बैठ गई ! अब दोनों लडके मिलकर मुझे डराने की कोशिश करने लगे और ! बस अब तक (सुखराली) पहुच चुकी थी ! वो दोनों लडके सुखराली के ही थे या किसी कारन वस् वही उतरने लगे और मुझे बार बार धमकिया दे रहे थे "उतर तू सुखराली, बताते है तेरी चाची को कैसे छेडा"

वो दोनों तो वही उतर गए, पर लड़की सायद गुडगाँव तक जाने वाली थी और मैं भी गुडगाँव स्टैंड तक ! अब बस में खामोशी थी, सायद सभी कुछ न कुछ बोलने वाले थे पर सब खामोश थे, लड़की भी खामोस थी, मै भी खामोश था, सवारिया भी खामोस थी ! और बस ड्राईवर भी खामोशी से ही बस चला रहा था ! चारो तरफ खामोशी थी !

गुडगाँव बस स्टैंड आया और सभी सवारिया उतरने लगी ! एक नजर मै उस लड़की को जरुर देखा जो अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी !

मैं उदास जरुर था पर एक बात सोचने पर जरुर मजबूर हुआ की "क्यों हम सभी बड़ी बड़ी बातें करते है और जब जरुरत आन पड़ती है तो चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं)

...........................

वो मुझे अच्छी लगती है.

उसका नाम गुलाबो है (मेरे खयालो की), (pinky) वो १४ साल की होगी और मे ३२ साल का , क्या मेल है ! जनाब मेल वेल तो तेल बेचते है ! यहाँ बात कर रहा हूँ ... Hmmmmm... क्या सोंचने लगे ?. हा... बिलकुल वही.? ( ???)

रोज देखता हूँ उसे, उसके हर अंग को, हर अदा को, हर उस बात को जो उसमे खास लगती है. पर गुस्सा आता है जब कभी वो नहीं दिखती है. सोंच की कल्पना में उड़ जाता हूँ की आज क्यों नहीं दिखी, मन दुखी हो जाता है ! और रोड के किनारे किनारे चल पड़ता हूँ क्योंकि ऑफिस भी तो टाइम पर पहुचना है ! पर अगले ही पल फासला ख़त्म हो जाता है. और भीड़ की रेल्लम पेल आ जाती है. और मे भी उसी में खो जाता हूँ क्यों की अगले चौहरे पर ऑटो स्टैंड है. जहा से मे ऑफिस के लिए ऑटो पकड़ता हूँ.! ऑटो में जगह लेने की होड़ में शामिल हो जाता हूँ ! यहाँ ऑटो वालो की भी एक आदत मुझे अजीब सी लगती है, अजीब ये की जिस [सवारी] की तलास में वो सुबह-सुबह नहा-धो कर पूजा पाठ कर , भगवन का आशीर्वाद लेकर, घर से निकलते है और जब वो [सवारी] उनके पास होती है उनके ऑटो में बैठने के लिए उतावली होती है. तो उनके नखरे देखने लायक होते है ! असोभानिये शब्द का इस्तेमाल ! और कभी कभी तो अपने ऑटो में ना बैठने देने की हिदायत भी दे डालते है ! और अगले कुछ समय बाद यानी ऑफिस टाइम के बाद जब सवारिया कम हो जाती है तब, एक सवारी जो पास की पान की दुकान से पान लगवा रहा हो और ऑटो वाला यह भाप जाये की वो उसकी ऑटो में बैठेगा ,तब ऑटो वाला तब तक उसका इन्तेजार बीच रोड में करेगा जब तक सवारी पान खाकर, दुकान वाले को सौ का नोट देकर खुल्ले वापस लेकर पान की दो - चार किल्ली रोड पर न थुक दे ! ऑटो वाला फिर उससे प्यार से पूछेगा " चलना है भाई" सवारी (पान की जुगाली) करते हुए ना में सिर हिला कर पास ही खड़ी अपनी साइकल की योर चल पड़ता है. (यह वाकया रोज तो नहीं होती पर एक बार मै देख चूका हूँ)

अगले दिन फिर वही उसी को एक पल देख लेने की चाहत ! अक्सर वो दिख भी जाती है ! आज का वाकया लिख रहा हूँ ! आज मैं सड़क के रांग साइड से था जिधर से वो रोज आती है ! शायद पास ही किसी Institute में पढ़ने जाती है. ! आज मै उसे पास से देखा फासला कोई 90 से 100 फिट की दुरी का था और समय 3 से 3.30 मिनट का ! आज वो एक बहुत ही अछे चूडीदार और उसी के मेचिंग के सभी चीजे पहन रखी थी ! शारीर की बनावट भी किसी तरह कम नहीं है उसकी इसलिए तो "वो मुझे अछी लगती है" मेरी नजर में नारी की बक्ष ही आकर्षण का मुख्या केंद्र है ! मै आजतक उसे सड़क के उस पर से देखा था उसके लिए सड़क का लेफ्ट साइड मेरे लिये सडक का राइत साइड । आज वो बहुत ही खुबसुरत लग रही थी ! बिलकुल किसी अप्सरा की तरह ! सुबह का नौ बज रहा था मौसम बिलकुल साफ था । सब कुछ साफ और सुहावना लग रहा था ! 90 - 100 फीट की दुरी कम होकर अ़ब 40 - 50 फीट रह गई थी ! वो करीब और करीब आती जा रही थी ! मै उसको लगातार देखे जा रहा था !

४० से ४५ सेकण्ड के कम समय में मै उसको पूरी तरह देख लेना चाहता था ! मेरी मानसिक इस्थिति ऐसी थी जैसे किसी किसी मर्डर मिस्ट्री फिल्म को देखते वक़्त दर्शक कातिल को जल्द से जल्द पहचान लेने की मन ही मन ख्वाहिज रखता हो ! मेरी हालत भी वैसी ही थी ! उतने कम समय में मै उसे (उसको) पूरी तरह देख लेना चाहता था ! फासला अ़ब खत्म होकर 20 से 10 फीट की दुरी का रह गया था ! मै उसे साफ साफ देख रहा था ! उसके मासूम से चेहरे को ! उसके बालो को ! उसके सभी अंगो को ! बारीकी से उसके आखो को ! उसके होठो को ! उसके चलने के अंदाज को ! उसके बॉडी लैंग्वेज को ! पता नहीं फिर कभी उसे देखने का मौका मिले न मिले ! ! ! ! . . . ****/ / / @ ! $ %*~~~ पापा ! पापा ! पापा ! ! ! मेरी बिटिया २ साल की है. ! जब ऑफिस से आता हूँ तो वो मेरे पास दौडी दौडी आती है ! ठीक से बोलना भी अभी तक नहीं सिख पाई है ! पर तोतली जुबान से पता नहीं क्या क्या एक साँस से कहती चली जाती है ! फिर ताफी (टाफी) और कुकुरे (कुरकुरे) की फारमाईस ! मैं भी उसके साथ उसी के भाषा में सुरु हो जाता हूँ ... और खो जाता हूँ आनंद के सागर मे ...

सायद गुलाबो (मेरे खयालो की pinky) के पापा भी उसे मेरी बिटिया के तरह ही तो प्यार करते होंगे ! पिंकी भी बहुत अछी हैं, और मेरी बिटिया भी ! क्योंकि वो मुझे अछी लगती है...


.ब्राजील ने मनाया “अंडरवीयर डे”
अरे, कपड़े पहनाना भूल गए? नहीं, नहीं ऎसी कोई बात नहीं। ये लोग तो ब्राजील में मंगलवार को मनाए गए तीसरे “अंडरवियर डे” दिवस में शरीक होने जा रहे थे। यह दिन मनाने के लिए पुरुष-महिला मॉडल अंतर्वस्त्रों में एक बस अड्डे के पास इकट्ठे हुए। इस अनोखे ‘अंडरवीयर दिवस” की शुरुआत 2003 में न्‍यूयॉर्क में हुई थी। (तस्वीर : एपी)

क्या इन लोगो ने कभी भूख दिवास (HUNGRY DAY) मनाया होगा !!! नही !!! कभी शिक्षा दिवस (EDUCATION DAY) मनाया होगा !!! नही !!! नही नही कभी नही !!! ये लोग केवल अंडरवियर दे या सेक्स डे मनाते है. क्योंकि ये लोग केवल " RAV PARTY और PUB " में ही नजर आते है. ड्रग का धंधा करते है. न्यू जेनरेशन को अपने तरफ़ ATTRACT करने के लिए कभी कभी दिन में (UNDERWEAR DAY) मानते है. और कुछ नही

यह तस्बीर भी ब्राजील की है


आवारा औरत, by prem lata

सायद यह कहानी आपको पसंद आए, और कुछ सिख भी मिले, Originally powered by http://pasand.wordpress.com/2008/02/07/suffered-woman/


आवारा औरत

By प्रेमलता पांडे

मंजुला दो भाइयों की अकेली बहिन थी। छोटे से क़स्बे में पली-बढ़ी मंजुला ने स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त की और प्रायवेट कंपनी में काम करने लगी। उसने भी जीवन के वही सपने देखे जो हर लड़की देखती है। पिता ने अनेक वर ढूंढ़े पर कोई लड़का पसंद नहीं आया। एक दिन पिता खीज गए और लड़की को ताने देने लगे। लड़की महसूस कर गयी और कह दिया कि अगली बार कोई लड़का ढूंढ़ा जाएगा तो वह कुछ नहीं कहेगी।पिता ने एक बड़े शहर में लड़का ढूंढा। लड़के की शिक्षा असल से ज़्यादा बताई गई, उसका पद और तन्ख्वाह भी असल से ज़्यादा बताए गए। चूँकि रिश्ता रिश्तेदार करवा रहे थे तो ज़्यादा पूंछ्ताछ नहीं की गयी। लड़्की ने तो कुछ न बोलने का प्रोमिस कर ही दिया था सो शादी हो गयी।शादी होकर मंजुला ससुराल आगयी।

एक दिन अचानक ससुर का देहावसान हो गया। घर में मंजुला और उसके पति के अलावा उसकी सास और दो देवर थे। ससुर के मरने पर सास तो उदासीन हो गयी। मंजुला को घर की सारी ज़िम्मेदारी दे दी गयीं। वह चुपचाप सबकुछ करती रही। तभी उसे पता चला कि उसका पति न तो उतना कामाता है और न ही उसकी उतनी शिक्षा है। इतना ही नहीं वह शराब भी जी भरकर पीता है, जिसकारण से घर में पैसा भी नहीं देता है। बहुत निराश हुई मंजुला, फिर भी सोचा कि चलो पति को समझाया जाए शायद कुछ ठीक हो जाए पर कहाँ?  वह तो मारपीट और करने लगा। रोज झगड़े होने लगे। सास तो बहु को ही कसूरवार ठहराती। देवर कुछ बीच में ही नहीं पड़ते। इसी बीच मंजुला ने एक पुत्र को जन्म दिया। कुछ समय बाद मंजुला ने पुनः जॉब पर जाने की सोची तभी सास ने बच्चे को रखने से मना कर दिया। अब क्या था निराश-हताश और परेशान मंजुला पैसे-पैसे को तरस गयी। एक दिन पति से अत्यधिक सतायी जाने पर उसने अपने बच्चे के साथ घर छोड़ दिया। अकेले अपनी किसी सहेली की मदद से किराए पर घर ले लिया। बच्चा क्रेचे में छोड़कर नई नौकरी करने लगी। चूंकि वह अकेली रहती थी तो  ससुरालवाले  जलभुन  गए, क्योंकि इसतरह अकेली रहकर उनकी नाक काट रही थी वह। घर-बाहर के कई लोगों को समझाने के लिए भेजा। पर मंजुला अब और न सह सकती थी सो अडिग रही।

धीरे-धीरे मंजुला अपने को सहज बनाने की कोशिश करती रही। वह इतनी व्यस्त रहती कि किसी से बात भी न कर पाती लोगों ने अनेक तुक्के लगाने शुरु कर दिए। उसे अवारा और चरित्रहीन भी कहा जाने लगा। पुरुष उससे हंस-हंसकर बात करने की कोशिश करते और घर जाकर अपनी स्त्रियों से उससे बात करने से मना करते क्योंकि वह अच्छी स्त्री नहीं थी। स्त्रियाँ बिना जाने-बूझे उसे अवारा कहतीं। वह पूरी गली में अच्छी औरत नहीं मानी जाती। आते-जाते उसे अजीब नज़रों से देखा जाता! पर वह किसी बात की परवाह किए बिना अपनी ज़िंदगी जीती रही  ऐसा नहीं था कि वह कभी पिघलकर आँसू नहीं बनती थी, पर उसे अपना  जीवन-यापन करना आता  था।

कैसा लगा आपको, कृपया अपना राय दे. !

कौन जिम्मेदार ? नॉएडा MMS ?












कौन जिम्मेदार नॉएडा MMS Published: Fri, 20 Feb 2009 at 09:34 ईस्ट
कल मैंने एक न्यूज़ पड़ा (http://www.samaylive.com/news/noida-mms-is-available-at-download-websites-for-free/609604) , 
एक और लव स्टोरी (एक और SCANDLE) साथ ही चाँद और फिजा का स्टोरी भी पड़ा हम अपनी गलतियों को दुसरो के ऊपर डाल देते है. फिजा ने चाँद से मुहब्बत की , प्यार के नगमे गए ( जनम जनम का साथ है तुम्हारा हमारा ,अगर न मिले इस जन्म में तो लेंगे जनम दुबारा ) कुछ दिन के बाद फिजा चाँद को बेवफा का खिताब दे दिया और MEDIA में छा गई , फिजा मैडम वो दिन भूल गई जब चाँद के बारे में जानते हुए भी आपने एक औरत की जिंदगी ख़राब की थी वो भी तो एक औरत थी ( चाँद की पहली धर्मपत्नी ) आज सायद अब उसकी बारी है, चाँद को सायद अपनी गलती का एह्साह हो गया है. और वो अपने पहली बीबी से वफ़ाई कर रहा हो और आज आप रो रही है. कल उसके आखो के आपने देखा था सायद वो भी आपके जैसे ही रो रही थी और आप प्यार के नगमे गा रही थी आप गलती करे तो ठीक , दुसरे करे तो ४२० ,  

अब आते है NOIDA SCANDL पर उस लड़की को जरुरत ही क्या थी अपने दोस्त (पूर्ब प्रेमी ) के साथ शादी के पहले (माडर्न बनने की ). 
प्यार था तो उसे एहसास करती , mms बनवाने के पहले जरा अपने (पापा और मामी ) के बारे में सोची होती जो आपको इतनी आजादी दे रखी है की आप बड़ी है और अपना अच्छा ख्याल रख सकती है (आजादी न देने पर पापा मामी पुराने ख्याल के है ) वो क्या जाने नए ज़माने को . और आप आज रो रही है. मै तो आपको ही दोस दूंगा आप बेकार में अपनी और अपने पापा मामी की इज्जत (ख़राब कर चुकी है ) आप सोच कर देखे एक ( गलती किसकी है ) 
जरा सोच कर देखे [ फोटो ] इसके लिए कौन जिम्मेदार है.

(girls please be careful, don't misuse your parents freedom)

क्या हम उदार नही

क्या हम उदार नही है,
क्या हमारे उदारवादी होने का मतलब ये है की हम सांप्रदायिक है. हिंदू और हिन्दुस्त्वा की बात करे तो हम सांप्रदायिक है.
क्या दूसरो को हम पर तोहमत लगना की हम सांप्रदायिक है ? सही है. ?

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१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ७०% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, ३०% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर ३०% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
१५. क्या आप मानते हैं - संस्कृत सांप्रदायिक और उर्दू धर्मनिरपेक्ष, मन्दिर साम्प्रदायिक और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष, तोगडिया राष्ट्रविरोधी और ईमाम देशभक्त, भाजपा सांप्रदायिक और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष, हिन्दुस्तान कहना सांप्रदायिकता और इटली कहना धर्मनिरपेक्ष ?
१६. अब्दुल रहमान अन्तुले को सिद्धिविनायक मन्दिर का ट्रस्टी बनाया गया था, क्या मुलायम सिंह को हजरत बल दरगाह का ट्रस्टी बनाया जा सकता है ?
१७. एक मुस्लिम राष्ट्रपति, एक सिख प्रधानमन्त्री और एक ईसाई रक्षामन्त्री, क्या किसी और देश में यह सम्भव है, यह सिर्फ़ सम्भव है हिन्दुस्तान में क्योंकि हम हिन्दू हैं और हमें इस बात पर गर्व है, दिक्कत सिर्फ़ तभी होती है जब हिन्दू और हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक कहा जाता है...?
१८.वो साठ सालो का आपका दर्द क्या है कहा है किस बात का है ताकी इलाज कराया जा सके...?
१९.वो टीस किस बात की है देश हित मे खुलासा करे...?

क्या ये हमारी भारतीय संस्कृति है. या !!! ?








Jara gaur kare : 







या ये हमारी भारतीय संस्कृति है ?