क्या !
पुरे २०० सौ रुपये ? दोपहर का खाना भी ? और साथ ही पिक्चर देखने के लिए टिकट का पैसा अलग से. ! और तो और मंत्री जी जीत गए तो अपने तो बारे न्यारे हो जायेंगे ! कुछ ऐसी ही बाते दो दोस्त राहुल और दक्ष के बिच हो रही थी..फिर दोनों ने ये फैसला किया की आज स्कूल नहीं जायेंगे, स्कूल के बजाय नेताजी के रैली में जायेंगे, करना क्या है बस ट्रक के ऊपर बैठ कर रास्ते भर नेताजी के नाम के नारे लगाने है और मंच के पास खड़े होकर तालिया बजानी है !
आज कल कुछ ऐसा ही चल रहा है जहा जहा इलेक्शन के बाज़ार गर्म है ! यहाँ गुडगाँव में भी नेताजी के घर के सामने तक़रीबन १०० गाडिया रोज सुबह खड़ी दिखती है, जो नेताजी के प्रचार में जाने के लिए सज-संवर रही होती है लगभग सड़क के बीचोबीच, ट्रैफिक रूकती है तो रुके, नेताजी को इससे क्या लेना देना ?
अब देखिये ! महाराष्ट्र में राज ठाकरे का वही पुराना सगुफा " मुम्बई - बोम्बे - बिहारी - भैया - मराठी मानुष " कार्यकर्ताओ में जोश-खरोश की कोई कमी नहीं... मनसे कार्यकर्ता सनीमा हॉल में तोड़ फोड़ मचा रहे है, गुस्सा इस बात का है की " फिल्म में बोम्बे शब्द का प्रयोग क्यों किया गया ?
राज ठाकरे मुबारक हो.. ख्याति मिल रही है.. अब हकीकत क्या है.. यार यह सिन करण जौहर जी ने फिल्माया है या राज ठाकरे ने पता नहीं ? पर (***तिया) तो जनता बन रही है, दोनों आखे खोल कर बन रही है ! और फायदा इन दोनों (ब्यावासियो) का हो रहा है !
सभी नेताओं की नेतागिरी रोटी, कपड़ा, मकान, पानी, बिजली, सड़क,स्कूल,हास्पिटल जेसे मुद्दे उठाने के दम पर चलती है, एक नया मुद्दा भी जुड़ गया है अब भाषा का ! देश के हालात कितने नाज़ुक है और ये k***त्ता (ब्यावासयी) अभी भी "बोम्बे और मुंबई" से बाहर नही आ रहा हे एक सीधा सा सवाल, अगर सभी ने मुंबई कहना शुरू कर दिया तो लोगो का क्या भला होगा और अगर नही कहा तो किसका क्या नुक़सान होगा ? पूरी दुनिया "बोम्बे" कहती हे और दूसरे देशो मे सबके रिकॉर्ड मे भी "बोम्बे" ही हे, जैसे : बोम्बे स्टाक एक्सचेंज, बॉम्बे हाई कोर्ट, बॉम्बे बी टी, इत्यादि इत्यादि !
ये कैसा राज? कैसी संकीर्ण मानसिकता ? कैसी गन्दी राजनीती है ? राज ठकरे जी के बच्चे इंग्लिश स्कूल में पढ़ते है और पिता बोम्बे/मुंबई की राजनीती की रोटिया सेककर उन्हें मंहगे प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश की शिक्षा दे रहे है ! महाराष्ट्र की जनता बेबकूफ बनकर उनके साथ चल रही है अंधो की तरफ !
क्या यह सब देखर अब कुछ दिन बाद देश के बाकी हिस्सों में ऐसी गन्दी राजनीती नहीं होने लगेगी ? देश में कहीं बम फट रहें, कही बाढ़ आ रही है, कहीं पानी नही है, कहीं खाने को नही है, और इनको नाम बदलने में दिलचस्पी है. कब तक जनता को मूर्ख बनाओगे, और सबसे पहले मै महाराष्ट्र के जनता से पूछता हूँ , क्या इस गन्दी राजनीती के बदले (सब लोग अगर मुंबई बोलने लगे तो)
आपके राज्य का विकाश हो जायेगा ?
बिदर्भ में अब किसान आत्मा हत्या नहीं करेंगे, ?
आपके लडके पढ़ लिखकर अब बेरोजगार नहीं रहेंगे. ?
राज्य में निम्न तबके जो मैला ढ़ोते है अब उन्हें मैला नहीं धोना पड़ेगा. ?
राज्य से बहार जाकर जो लोग रोजगार कर रहे है उनको वापस अपने राज्य में नौकरी राज ठाकरे देंगे..?
अगर इनमे से एक का भी जवाब "हा" में है तो आप खुसी खुसी राज ठाकरे को हीरो बनाये और देश को भाषावाद, जातिवाद के नाम पर अलग करे... पहले किसी और की नीति थी “फूट डालो राज करो” इसी के निति के बल पर अंग्रेज कई वर्षो तक हमारे ऊपर राज करते रहे है ! और अब ये राज ठाकरे इसी निति को अपना कर राज करने की गन्दी साजिस रच रहे है, जनता अब भी नहीं सचेत हुई तो राज ठाकरे जैसे लोग हमें जाती के नाम पर; भाषा के नाम पर; धर्म के नाम पर बांट कर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे ! अपने बच्चो को इंग्लिश स्कूल (बोम्बे स्कॉटिश) में पढ़ते है और सरकारी स्कूल में आम जनता के बच्चे किस तरह पढ़ते है, सब को पता है !
राज ठाकरे से : मुन्ना नेतागिरी ही करनी है तो, आदरणीय मोतीलाल, मोरारजी देसाई, बाबु जगजीवन राम जैसी नेतागिरी कर ! कुए से बहार निकल कर देख दुनिया बहुत बड़ी है, भारत बहुत बड़ा है, जिसमे अनेको भाषा-भाषी के लोग रहते है, जो पुरे विश्व में विख्यात है, उन्हें भाषा के नाम पर मत तोड़ !
1 दूसरो के कमेंट्स पढ़े..:
अंग्रेजों का फुल डालो और राज करो का फोर्मुला तो आज भी जबरदस्त हीट है. कम से कम राज ठाकरे, कांग्रेस, माया बहिन तो इसी के सहारे अपनी रोटियां सेंक रहे हैं.
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