सशस्त्र बल विशेषाधिकार और मणिपुर (इरोम शर्मिला)

आइये चाय पीते हुए कुछ " अलग थलग पड़े राज्य मणिपुर और ईरोम शर्मिला के बारे में जाने !

मणिपुर का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है ! मणिपुर के महाराजा ने भारत आजाद हो जाने के बाद (१९४७) में मणिपुर को संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया और अपनी संसद के लिए चुनाव करवाया, लेकिन कई घटनाक्रम के बाद १९४९ में महाराजा भारत में मणिपुर का विलय हो जाने के लिए सहमत हो गए ! पहले तो इसे "ग" श्रेणी में रखा गया बाद में सन १९६३ में केंद्र शासित राज्य बना और आखिरकार 1972 में इसे राज्य बना दिया गया !
मणिपुर का मतलब है "रत्नों से भरा-पूरा एक गाँव" पर आज ये आलम है की यहाँ हर तरफ लुट खसूट मची हुई है, सारे संगठन एक दुसरे के जान के दुसमन बने हुए है ! फिरौती और हत्या अब आम बात हो गई है ! मणिपुर में लगभग हर हफ्ते किसी न पार्टी का बंद होता है ! पिछले कुछ २५-३० सालो से पूरा मणिपुर एक गीली लकडी की तरह सुलग रहा रहा है ! फिरौती, गुमशुदगी, प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या के सैकड़ों मामले खबरों में आते रहते हैं ! हर तरफ अशांति फैली हुई हा ! 1958 में जब नागा आंदोलन चला तो इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक कानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून कहा जाता है. और सेना के इस "विशेषाधिकार" का मतलब क्या होता है ? आज ये हर कोई जनता है ! जैसे
बिना सर्च वारंट के किसी के घर की तलाशी ली जा सकती है.

किसी को भी अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने की छूट मिल जाती है.

और तो और केंद्र सरकार की मंजूरी के बगैर किसी भी अधिकारी या जवान को सजा नहीं दी जा सकती.
सिर्फ शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार या टॉर्चर करने का अधिकार सेना को मिल जाता है !
किसी नॉन कमीशंड अधिकारी जैसे कि हवलदार को भी सिर्फ शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार या टॉर्चर करने का अधिकार मिल जाता है !

समय के साथ-साथ मणिपुर के अलग-अलग जिले इस कानून के तहत लाए गए और 1980 तक ये पूरे मणिपुर में लागू हो गया ! जनता के साथ क्या क्या होता होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है ! वह की जनता के लिए सेना गेहू पीसकर आटा बनती है जिससे जनता दो वक़्त की रोटी सुकून से खा सके, और उस गेहू के साथ न जाने कितने घुन पिस जाते है !

2004 में दशकों से यहां के निवासियों के भीतर उबल रहा लावा पहली बार तब फूट निकला जब मनोरमा नाम की एक महिला को असम राइफल्स के जवान जबर्दस्ती उसके घर से उठाकर ले गए. अगले दिन उसका शव मिला जो उसके साथ हुए बलात्कार और प्रताड़ना की कहानी कहता था. मणिपुर में इस घटना से एक भूचाल आ गया. राज्य में हर जगह विरोध प्रदर्शन हुए. करीब एक दर्जन महिलाओं ने निर्वस्त्र होकर असम राइफल्स के मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया. उनके हाथ में तख्तियां थीं जिन पर लिखा हुआ था "इंडियन आर्मी रेप अस"



सेना के द्वारा आतंकवादियों के धर-पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मरे जाते है ! इसी का नतीजा है है की पिछले कई सालो से इरोम शर्मिला (एक सामाजिक कार्यकर्ता) सेना के विशेष अधिकार के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठी है ! सेना के द्वारा चलाये जा रहे खोजबीन अभियान के तहत सन २००० में लगभग ८-१० निर्दोष लोग मरे उस कत्लेआम से बिचलित हुई इरोम शर्मिला का अनसन सेना के विशेषाधिकार (अर्मड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट) के खिलाफ आज तक जरी है, पर उसका सुध लेने वाला कोई नहीं है !
उत्तर पूर्बी राज्य में मैंने अपने जीवन के लगभग २०-२२ साल बिताये है, कई मेरे स्थानिये दोस्त रहे है, साथ पढ़े है, खेले है, और वहा के जन जीवन को बहुत करीब से देखा है मैंने ! सेना की बर्बरता भी देखी है ! अपने एक दोस्त की सेना के द्वारा अंतिम बिदाई भी देखी है ! और उसके बाद उसके घर की बर्बादी भी, जहा जीवन के मायने ही खत्म हो गए थे ! घर के दुसरे सदस्यों के चेहरे पर खामोशी और एक सुन्य के सिवा कुछ नहीं रह गया था ! कुछ दिन बाद छोटे भाई की मानसिक हालत बिगड़ गई और उसकी भी अंतिम बिदाई हो गई, पिता इन सबको बर्दास्त नहीं कर पाए और वो भी चल बसे ! आज उनके घर पर बिरानी छाई रहती है ! एक दो लोग घर के अन्दर दिख जाते है सायद वो उनके कोई रिश्तेदार हो ! पर वो घर तो बीरन हो गया ! अब कुछ सालो से असम जाना बंद हो गया है पर वहा के दोस्तों से फोन पर कभी कभार बाते हो जाती है और बातो के बिच उस दोस्त की शान की बखान भी हो जाती है (शान जो उसके नाम का पहचान भी था...) शान जो उस छोटे से शहर का प्यारा भी था, हम दोस्तों का अजीज था, जो जा जाने कब आतंकी संगठन का सदस्य बन गया और उनकी गलत आदर्शो का बलि चढ़ गया
सेना और पुलिस का अपने गाँव या घर में आना किसी को अच्छा नहीं लगता ! सेना अपनी काम करती है जो उसे आदेश मिलता है अपने उच्चाधिकारियों के द्वारा ! अब अकेले मणिपुर में ही लगभग ३५-४० अलग अलग आतंकबादी संघठन है जो आज अपने हक़ की लडाई कम और लुट खसूट की लडाई ज्यादा कर रही है ! सरकार से मिलाने वाली धन का कम से कम तिहाई हिस्सा इनके बिच न बाँट जाये तब तक इनका (आज़ादी की लडाई) चलती रहती है, अपने स्थानिये दोस्तों को मैंने कई बार ये कहते और करते देखा है की पढ़ - लिख कर नौकरी कौन करे जब उसके बिना ही सब कुछ >>> ! स्कूल जाने वाले स्तर के बच्चे इस बात का पता लगाने में ज्यादा दिलचस्पी रखते है की किस ठेकेदार को कितनी बड़ी सरकारी ठेकेदारी मिली है, कौन सी मोबाइल कंपनी कहा कहा अपनी टावर लगा रही है, किस दुकानदार की कमाई आजकल ज्यादा हो रही है, कौन सी नई प्राइवेट कंपनी उनके इलाके में लगाने जा रही है ! बिना किसी कारन के राज्य बंद की धमकी देकर ब्यावसायियो से पैसे ऐठना >>> इत्यादि इत्यादि ! इन सबसे निबटने के लिए सेना क्या करे ???? ... इरोम शर्मिला और उनके समर्थको से मेरा भी एक सवाल है की सेना के द्वारा चलाये जा रहे अभियान को पूरी तरह उत्त्तर पूर्बी राज्यों से हटा लिया जाना ही एक मात्र रास्ता बचा है ? या शांति और विकाश के रास्ते कही और से भी गुजरते है ? >>>>>

1 दूसरो के कमेंट्स पढ़े..:

Randhir Singh Suman ने कहा…

या शांति और विकाश के रास्ते कही और से भी गुजरते है ? nice