वो मुझे अच्छी लगती है.

उसका नाम गुलाबो है (मेरे खयालो की), (pinky) वो १४ साल की होगी और मे ३२ साल का , क्या मेल है ! जनाब मेल वेल तो तेल बेचते है ! यहाँ बात कर रहा हूँ ... Hmmmmm... क्या सोंचने लगे ?. हा... बिलकुल वही.? ( ???)

रोज देखता हूँ उसे, उसके हर अंग को, हर अदा को, हर उस बात को जो उसमे खास लगती है. पर गुस्सा आता है जब कभी वो नहीं दिखती है. सोंच की कल्पना में उड़ जाता हूँ की आज क्यों नहीं दिखी, मन दुखी हो जाता है ! और रोड के किनारे किनारे चल पड़ता हूँ क्योंकि ऑफिस भी तो टाइम पर पहुचना है ! पर अगले ही पल फासला ख़त्म हो जाता है. और भीड़ की रेल्लम पेल आ जाती है. और मे भी उसी में खो जाता हूँ क्यों की अगले चौहरे पर ऑटो स्टैंड है. जहा से मे ऑफिस के लिए ऑटो पकड़ता हूँ.! ऑटो में जगह लेने की होड़ में शामिल हो जाता हूँ ! यहाँ ऑटो वालो की भी एक आदत मुझे अजीब सी लगती है, अजीब ये की जिस [सवारी] की तलास में वो सुबह-सुबह नहा-धो कर पूजा पाठ कर , भगवन का आशीर्वाद लेकर, घर से निकलते है और जब वो [सवारी] उनके पास होती है उनके ऑटो में बैठने के लिए उतावली होती है. तो उनके नखरे देखने लायक होते है ! असोभानिये शब्द का इस्तेमाल ! और कभी कभी तो अपने ऑटो में ना बैठने देने की हिदायत भी दे डालते है ! और अगले कुछ समय बाद यानी ऑफिस टाइम के बाद जब सवारिया कम हो जाती है तब, एक सवारी जो पास की पान की दुकान से पान लगवा रहा हो और ऑटो वाला यह भाप जाये की वो उसकी ऑटो में बैठेगा ,तब ऑटो वाला तब तक उसका इन्तेजार बीच रोड में करेगा जब तक सवारी पान खाकर, दुकान वाले को सौ का नोट देकर खुल्ले वापस लेकर पान की दो - चार किल्ली रोड पर न थुक दे ! ऑटो वाला फिर उससे प्यार से पूछेगा " चलना है भाई" सवारी (पान की जुगाली) करते हुए ना में सिर हिला कर पास ही खड़ी अपनी साइकल की योर चल पड़ता है. (यह वाकया रोज तो नहीं होती पर एक बार मै देख चूका हूँ)

अगले दिन फिर वही उसी को एक पल देख लेने की चाहत ! अक्सर वो दिख भी जाती है ! आज का वाकया लिख रहा हूँ ! आज मैं सड़क के रांग साइड से था जिधर से वो रोज आती है ! शायद पास ही किसी Institute में पढ़ने जाती है. ! आज मै उसे पास से देखा फासला कोई 90 से 100 फिट की दुरी का था और समय 3 से 3.30 मिनट का ! आज वो एक बहुत ही अछे चूडीदार और उसी के मेचिंग के सभी चीजे पहन रखी थी ! शारीर की बनावट भी किसी तरह कम नहीं है उसकी इसलिए तो "वो मुझे अछी लगती है" मेरी नजर में नारी की बक्ष ही आकर्षण का मुख्या केंद्र है ! मै आजतक उसे सड़क के उस पर से देखा था उसके लिए सड़क का लेफ्ट साइड मेरे लिये सडक का राइत साइड । आज वो बहुत ही खुबसुरत लग रही थी ! बिलकुल किसी अप्सरा की तरह ! सुबह का नौ बज रहा था मौसम बिलकुल साफ था । सब कुछ साफ और सुहावना लग रहा था ! 90 - 100 फीट की दुरी कम होकर अ़ब 40 - 50 फीट रह गई थी ! वो करीब और करीब आती जा रही थी ! मै उसको लगातार देखे जा रहा था !

४० से ४५ सेकण्ड के कम समय में मै उसको पूरी तरह देख लेना चाहता था ! मेरी मानसिक इस्थिति ऐसी थी जैसे किसी किसी मर्डर मिस्ट्री फिल्म को देखते वक़्त दर्शक कातिल को जल्द से जल्द पहचान लेने की मन ही मन ख्वाहिज रखता हो ! मेरी हालत भी वैसी ही थी ! उतने कम समय में मै उसे (उसको) पूरी तरह देख लेना चाहता था ! फासला अ़ब खत्म होकर 20 से 10 फीट की दुरी का रह गया था ! मै उसे साफ साफ देख रहा था ! उसके मासूम से चेहरे को ! उसके बालो को ! उसके सभी अंगो को ! बारीकी से उसके आखो को ! उसके होठो को ! उसके चलने के अंदाज को ! उसके बॉडी लैंग्वेज को ! पता नहीं फिर कभी उसे देखने का मौका मिले न मिले ! ! ! ! . . . ****/ / / @ ! $ %*~~~ पापा ! पापा ! पापा ! ! ! मेरी बिटिया २ साल की है. ! जब ऑफिस से आता हूँ तो वो मेरे पास दौडी दौडी आती है ! ठीक से बोलना भी अभी तक नहीं सिख पाई है ! पर तोतली जुबान से पता नहीं क्या क्या एक साँस से कहती चली जाती है ! फिर ताफी (टाफी) और कुकुरे (कुरकुरे) की फारमाईस ! मैं भी उसके साथ उसी के भाषा में सुरु हो जाता हूँ ... और खो जाता हूँ आनंद के सागर मे ...

सायद गुलाबो (मेरे खयालो की pinky) के पापा भी उसे मेरी बिटिया के तरह ही तो प्यार करते होंगे ! पिंकी भी बहुत अछी हैं, और मेरी बिटिया भी ! क्योंकि वो मुझे अछी लगती है...

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