मैं दोहरी मानसिकता लेकर जीता हूँ


दोहरी मानसिकता,

क्यों हम (मेरा मतलब है मैं) क्यों मैं दोहरी मानसिकता लेकर जीता हूँ ! और सबको लगता है कितना अच्छा आदमी हूँ मैं, मेरे बारे में प्रचलित है की मैं काफी अच्छा और सीधा आदमी हूँ ! जबकि मैं वैसा नहीं हूँ ! मैं अपने एक दोस्त जो की लगभग मेरे ही जैसा है जब मिलते है, बात करते हुए तो पता ही नहीं चलता की क्या - क्या और अश्लीलता की कितनी हदों को पर कर जाते है हम ! साथ काम करने वाली लड़कियों के बारे में, उनकी शारीरिक बनावट और उनके ब्याक्तिगत (काल्पनिक) बातो को जानने का दावा तक कर डालते है !

आज एक ब्लॉग में पढ़ा (देवी देवतायों के जननांग नहीं होते) क्यों मूर्तिकर मूर्तियों को गढ़ते समय उनके जननांगो को नहीं गड़ता ! इसके पीछे क्या वास्त्विकता है ! क्या हमारा ये देवी देवतायों के प्रति श्रधा है, या कुछ और...

ब्लोगर को कमेंट्स भी डाले और मन ही मन सोचने लगा "की क्यों हम सच्चाई स्वीकार नहीं करते" की हम ...

एक दंतकथा " यक्ष को दिया गया युधिष्ठिर का जवाब बड़ा मायने रखता है कि "अगर मेरी माता माद्री मेरे सामने नग्नावस्था में आ जाएँ तो मेरे मन में पहले वही भाव आयेंगे, जो एक युवा के मन में किसी ..."

क्यों जब मेरी बिटिया के साथ कोई लड़का हंस-हंस बाते करता है तो मैं अपने बिटिया को डांट कर कहता हूँ घर के अंदर जा और मम्मी के साथ घर का काम कर ! और सबसे नज़ारे बचाते हुए गली के अन्य लड़कियों को देखता हूँ और उनसे नजदीकिया बनाने की हर संभव कोशिश में लग जाता हूँ और मौका मिलते ही...


*** दोस्तों कमेंट्स जरुर डाले और मेरी गलतियों को जरुर बताये, इससे मुझे आगे लिखने की उर्जा मिलेगी

2 दूसरो के कमेंट्स पढ़े..:

RAJIV MAHESHWARI ने कहा…

हकीकत के बहुत पास से गुजरते हुए ....शायद ये लेख लिखा है.
आपने तो हम मर्दों के दोगलेपन को खोल कर रख दिया है .....बगल में छुरी......वाली बात है जी.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

स्वयं को समझना ज्यादा आवश्यक है न की ये ब्रह्माण्ड कैसे काम करता है. हम जितने ज्ञानी होते जायेंगे इस ब्रह्माण्ड का दायरा और व्यापक होता जायेगा. मन की वास्तविकता तो व्यवहार से परिलक्षित होगी. फिर भी सामजिक जीवन में मर्यादित आचरण किसी भी धर्म की पहली मांग है.