महँगी पड़ी ! मूसलचंद बनना..

भाई साहब! हनुमान मूर्ति, करोल बाग अगला स्टाप ही है क्या ?

बस में खड़े खड़े मै अपने बाजु में बैठे एक सज्जन से पूछ लिया !

हा बेटे अगले गोल चक्कर पे उतर जाना ! उस सज्जन ने जवाब दिया !

आगे बहुत ही जाम था सो मैंने वही उतर जाना ठीक समझा ! पर वहा से काफी चलना पड़ा मुझे, झंडेवालान मेट्रो के निचे से होते हुए मै हनुमान जी की मूर्ति के पास बहुचा ! मुझे वहा से गुडगाँव बस स्टैंड तक जाना था और गुडगाँव के लिए बस पकड़नी थी, पर उसके पहले आधा किलो बेसन का लड्डू ख़रीदा और चल पड़ा पहले हनुमान जी का भोग लगाने !

रात के करीब नौ बजे (करोल बाग)गुडगाँव स्टैंड पर पंहुचा, सवारिया बहुत कम थी और जो थी वो भी किसी तरह कैब-वैब पकड़ने के चक्कर में थी. मैंने भी कोशिश की पर गुडगाँव बस स्टैंड तक के लिए कोई कैब नहीं मिली सो थक कर मैं स्टैंड पर आकर बैठ गया ! और बस का इंतजार करने लगा ! इसी तरह २० से २५ मिनट बीत गया पर हा मेरे साथ साथ कुछ और सवारिया भी थी वहा जो बस (हरियाणा रोडवेज) का इंतजार कर रही थी !

मैं भी फुर्सत में ही था ! सो बस का इंतजार ठीक ही लग रहा था ऊपर से गर्मी का मौसम ! अपने समय से बस आई और मैं बस में खिड़की के तरफ की सीट पर बैठ गया ! बस चल पड़ी , बस में कुल १०-१२ सवारिया ही थी !बस चल पड़ी और बहुत जल्दी धौलाकुवां बहुच गई, हा धौलाकुवां में कुछ सवारिया चढी और अ़ब कुल मिला कर २०-२५ सवारिया थी बस में ! उसमे एक लड़की भी थी धौला कुवां से चढ़ने वाली सवारियों में ! लड़की इसलिए याद है क्योंकि केवल दो ही लड़की थी पुरे बस में एक करोल बाग से चढी थी और एक धौलाकुवां से ! ज्यादा सवारी न होने के कारण बस बहुत जल्दी धौला कुवां से भी चल पड़ी ! वो लड़की अकेली थी, सफ़ेद सुट में, लेडीज सीट की ओर खिड़की के तरफ बैठ गई और जल्दी में बैठते ही मोबाइल पर लगी बातें करने, सायद बस में चढ़ते समय मोबाइल किसी से कनेक्टेड ही था !

धौलाकुवां से चढ़ने वाली सवारियों में दो लोग और थे उसमे से एक काफी देर तक बस में खडा रहा जबकी लगभग काफी सीटें खली थी पर वो (काला सा लड़का) उस लड़की के साथ वाली सीट पर बैठ गया ! बस फिर चल पड़ी ! हल्की हल्की बूंदा बंदी भी होने लगी मौसम काफी खुशनुमा लग रहा था ! आदतन बस में, कुछ (कुछ लोग जिसमे से मैं भी हूँ) दूसरी सवारियों के तरफ और पुरे बस में जरुर नजर डालते है ! मैंने भी वही किया , अचानक मेरी नजर उस सीट की तरफ रुक गई जहा वो (काला सा लड़का) और वो लड़की (सफ़ेद सुट) पहने थी ! लड़की अब भी मोबाइल पर ब्यस्त थी ! वो (काला सा लड़का) काफी उत्तेजित सा लग रहा था और अपनी नजर में सबसे नजरे बचाते हुए उस लड़की को अपनी बायीं कोहनी से छेड़ रहा था और लगातार छेड़ रहा था, लड़की का पुर ध्यान मोबाइल में लगा हुआ था या सायद वो मोबाइल पर काफी ब्यस्त होने की नक़ल कर रही !

चाहे जो भी हो पर वो (काला सा) लड़का अब उस लड़की के वक्षो को सहलाने की भी कोशिस कर रहा था ! इस बार लड़की ने उसका हल्का सा विरोध किया और लड़का थोडा डरा या सायद डरने का नाटक करने लगा ! लड़की ने विरोध में इतना किया की अपना पर्स अपने और उस लडके के बिच रख लिया और फिर मोबाइल पर वयस्त हो गई, पर उस लडके का उससे ज्यादा विरोध नहीं किया ! वो (कला सा) लड़का जिसकी हिम्मत काफी बढ़ चुकी थी इस बार फिर अपने कोहनी से नहीं बल्कि अपनी दाई हाथ से (लड़की जो उसके बायीं तरफ बैठी थी) लड़की के वक्ष को भिचा, लड़की इस बार सायद दर्द से कराह उठी और हल्का सिर्फ हल्का सा विरोध किया ! और फिर मोबाइल पर व्यस्त हो गई !

मैं इसबार अपने जगह से उठा और उस (काला सा) लडके का विरोध किया ! जितना हो सका अपने पुरे दम ख़म से उस लडके को डराने की कोशिश की और कहा " क्यों बे क्यूँ उस बेचारी लड़की को छेड़ रहा है" लड़का कुछ डरा और अपने डर को छुपाते हुए कहा "देखा क्या तुने ?"

मैंने कहा "हा देखा और काफी देर से देख रहा हूँ तेरी गन्दी हरकत" तेरे घर में तेरी बहन नहीं है क्या ! ये भी तो किसी की बहन होगी"

पर लड़का डरने के बजाय मुझे ही धमकी देने लगा " चुप कर बे, घणा आया हीरो पहलवान" ! उस लडके का दूसरा साथी भी उसी की तरफ से मुझे ही मारने-वारने की धमकी देने लगा ! बस की दूसरी सवारिया केवल हमारी बातें सुन रही थी पर किसी का support मुझे नहीं मिला ! मैं भी अकेले उनसे लड़ने का मन बना लिया था ! दुसरे ने कहा "तेरी चाची लगती है क्या ये, पूछ उससे, क्या मैंने ----- दबाई है उसकी ! लड़की अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी ! पर उस लडके का विरोध कर उसने मेरा साथ तनिक भी ना दिया

और बात बढ़ते देख चुपचाप वह वहा से उठकर आगे की तरफ बढ़कर एक खाली सीट पर बैठ गई ! अब दोनों लडके मिलकर मुझे डराने की कोशिश करने लगे ! बस अब तक (सुखराली) पहुच चुकी थी ! वो दोनों लडके सुखराली के ही थे या किसी कारन वस् वही उतरने लगे और मुझे बार बार धमकिया दे रहे थे "उतर तू सुखराली, बताते है तेरी चाची को कैसे छेडा"

वो दोनों तो वही उतर गए, पर लड़की सायद गुडगाँव तक जाने वाली थी और मैं भी गुडगाँव स्टैंड तक ! अब बस में खामोशी थी, सायद सभी कुछ न कुछ बोलने वाले थे पर सब खामोश थे, लड़की भी खामोस थी, मै भी खामोश था, सवारिया भी खामोस थी ! और बस ड्राईवर भी खामोशी से ही बस चला रहा था ! चारो तरफ खामोशी थी !

गुडगाँव बस स्टैंड आया और सभी सवारिया उतरने लगी ! एक नजर मै उस लड़की को जरुर देखा जो अब भी मोबाइल पर बातें कर रही थी !

मैं उदास जरुर था पर एक बात सोचने पर जरुर मजबूर हुआ की "क्यों हम सभी बड़ी बड़ी बातें करते है और जब जरुरत आन पड़ती है तो चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं)

कहानी नहीं सत्य घटना है और पुर्णतः सत्य है

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