पर आज यह स्वरुप बदला है औरते घर से बहार निकली है और तरक्की की राह पकड़ मर्दों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चल रही है, चले भी क्यों न उनको भी हक है पूरी आज़ादी से जीने की, आसमान छूने की, अपने मन की करने की जो मान चाहे ! जब समाज की बनायीं अन्य रुढिवादी परम्पराए टूट रही है तो ये क्यों नहीं
अपने ढंग से जीने का अधिकार सभी को है लेकिन समाज की मान्यताओ और परम्पराओ का उन्मूलन करके नहीं !
आज कुछ लड़कियों को खुलेआम सिगरेट पिटे हुए देखा जा सकता है ! पब में जाकर शराब पीते हुए और अपने साथी मित्र के साथ अश्लील से अश्लील हरकत करते हुए ! इस पर कुछ टिका टिपण्णी की जाय तो सुनाने को मिल जायेगा " तो इसमें बुराई क्या है ? क्या मर्द ये नहीं करते ? उनके लिए आज़ादी ? और हमारे लिए ...?
अक्सर लड़कियाँ तंग कपड़ों में कालेज, बाहर, मॉल या बाज़ार आती हैं और नतीजन ईव-टीजिंग को बढ़ावा मिलता है ।
इसपर कुछ लड़कियों का ये कहना है की हमारे साथ ही भेद भाव क्यों ? क्या हमें अपने मन पसंद कपडे पहनने का अधिकार नहीं है ? हमें आज़ादी से जीने का अधिकार नहीं ?
है कपडे पहनने का भी अधिकार है, मगर कुछ सलीका भी तो होता हो, मगर ऐसे बस्त्र जिसमे आधे से भी अधिक बक्ष नुमाया हो, नितम्ब और शारीर के अन्य अंग बखूबी दिखे, क्या ऐसे बस्त्र पहनने चाहिए आम बाज़ार या सर्ब्जनिक स्थान पर ! अगर हा तो यह गलत है (मेरे बिचार से) !
एक साधारण मनोबिज्ञान : पत्र पत्रिकयो के कवर पेज पर अक्सर कुछ इसी ढंग के फोटो सजे होते है, (सभी ने देखा है) जो अनायाश ही किसी को एक पल आकर्षित करता है ! इसके पीछे एक ही उद्देश्य होता है आकर्षित करना और उपयोग करवाना (खरीदवाना) !
अ़ब लड़किया अगर तंग कपडे पहनती है तो इसके पीछे उनका क्या मनोविज्ञान होता है ये तो वही जाने .. !
एक समाचार बीबीसी में पढ़ा " दो लड़कियों ने अपने पिता के ऊपर उनके साथ बलात्कार का आरोप लगाया और एक NGO ने आरोप सिद्ध कर पिता को सजा भी सुनवा दिया.. पर जाच पड़ताल के बाद पता चला की, दोनों लड़कियों ने अपने पिता के ऊपर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था ! इसलिए आरोप लगाया था की उनके पिता ने उन्हें दोस्तों के साथ पार्टी में जाने से मन कर दिया था !
दो बेटिय़ों ने अपने पिता के साथ जो कुछ किया वो उनकी छोटी सोच को दर्शाता है लेकिन पिता ने ना केवल अपनी बच्चियों को माफ किया बल्कि उन तमाम बेटियों को एक सबक भी दिया है जो अपनो को घर की बजाय बाहर तालाशती है।
मै अपने एक ब्लॉगर मित्र "सलीम खान" के एक लेख " नारी का व्यापक अपमान और भारतीय नपुंसकता Modern Global Women Culture and India " में टिपण्णी की थी जो इस प्रकार है आप भी पढ़े ! इस टिपण्णी के बाद मुझे एक फोन आया किसी लड़की का " जो की मुझे पहले तो मर्दों वाली दो-चार गलिया दी और कहने लगी हमसे जलते हो क्या ?" उसके बाद उसके किसी अन्य दोस्त का हल्का सा आवाज़ आया, "बंद कर न यार चल पहले ख़त्म कर कुछ लडखडाती आवाज़ में और लाईन कट गया !
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Ganesh Prasad ने कहा…
दोस्त मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की क्या कमेन्ट करू..
नारी के पक्ष में या बिपक्ष में , कुछ नारियो को देखकर तो लगता है.. जो हो रहा है ठीक है. पर बाकि (९०%) महिलायों / औरतो को देखकर लगता है की नहीं ऐसा उनके साथ ऐसा नहीं होना चाहिए..
अभी कल (06.09.09) ही की बात है ( यहाँ गुडगाँव के सदर बाज़ार में, मैं किसी काम से गया था वहा देखा की तीन आधुनिक लड़किया (MTV TYPE) सभी के नजरो का केंद्र बनी हुयी थी अपने उछल कूद के कारण, इतने में मै देखा की एक जो ज्यादा ही (MTV TYPE) लग रही थी एक पटरी वाली दुकान ( woman's inner wear) से एक ब्रेसिअर लेकर दुकानदार से पूछ रही थी भैया ये कितने का है और मेरे size का है क्या ? (काफी तेज आवाज) में ताकि कम से कम आसपास के कुछ लोग सुन सके और साथ ही साथ हँसे भी जा रही थी... साथ ही दूसरी लड़की हसते हुए उसे खीच रही थी और कहती जा रही थी "चल न यार क्यों भैया (भैया पे जोर देकर) को परेसान कर रही हैं
यह देखकर क्या लगता है.. आपको.. कैसी भावना जाग्रित होती है ऐसी लड़कियों के लिए, ऐसे में अगर कोई मनचला उनके साथ छेड़खानी करे तो.........
मै कोई कुंठित और मनोरोगी नहीं हूँ
और ना ही नारी विरोधी
September 7, 2009 5:35 PM
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हम आधुनिक बनाने के चक्कर में पश्चिम की गन्दगी को अपना रहे है ! लड़किया आधुनिक बनाने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही आधुनिक होने लगी है है ! कभी हमें पढ़कर कह पड़ेगी "male dominated society" का एक और "executive" और फिर "चोखेर बाली, औरतनामा, गंदी लड़की और न जाने कितने पेज पर भरते चले जायेंगे !
बनाना ही है तो इंदिरा गाँधी बनो, इंदिरा नुई, सानिया मिर्जा, सुनीता विलिअम्स, पि टी उषा बनो, ना की कुछ ऐसे जैसे "मै टल्ली हो गई..........."
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